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जिनदत्त-मम्म
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ठा
फिर प्रसन्न होकर कहने लगी "ऋषि का कहा हुआ कमी नहीं होता है । सेठ भी निश्चित रूप से आनन्दित होकर बोला- प्रिय (अच्छा हो ) होगा ऐसा मनमें सोचकर उछाह करो । ११५८||
मोसिउ - मुझसे ।
रिज़य - निज ।
रिंगरु निश्चित रूप से ।
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1 ५६ - ६० ]
६ दुख
शत्रु करत दिन केते गये, सेहिरिए गम्भु मास कुछ भए । आह भए पूरे बस्त मास, सु जम्मु भी पूरिष मास जीवयेउ धरि मंदण भयंज, घर घर कुटंब बघाऊ गयउ । गावहि गीतु नाइका सकु, चउरी पूरिज मोतिन्ह कु ॥
महोउ - महोत्सव
पिव पितृ-पिता- प्रिय ।
अर्थ:- राज करते हुये ( सुख भोगते हुये ) कितने ही दिन बीत गये । कालान्तर में सेठाणी को गर्भ रहा जो दो मास का हो गया फिर दम मास पूरे हो गये । पुत्र का जन्म हुआ और सबकी याशा पूरी हुई ||५६।१
गभु गर्ने ।
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जीवदेव के घर जब पुत्र उत्पन्न हुआ तो उसके कुटुम्बियों द्वारा घर-घर मैं बघावा गाया गया । स्त्रियां उत्साहपूर्वक गीत गाने लगी तथा उन्होंने मोतियों के चौक पूरे ॥६०॥
उत्साहपूर्वक ।
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नद्रिका
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नायिका - स्त्री ।
उकुस उत्क
[ ६१-६२ ]
चेहि तंबोस त फोफल पारा, दो चोर पटोले पारी । लोरि, दोने सेठ बाम दुइ कोडी ॥
लुल वधाए नाही
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