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________________ जिनदत्त-मम्म १५ ठा फिर प्रसन्न होकर कहने लगी "ऋषि का कहा हुआ कमी नहीं होता है । सेठ भी निश्चित रूप से आनन्दित होकर बोला- प्रिय (अच्छा हो ) होगा ऐसा मनमें सोचकर उछाह करो । ११५८|| मोसिउ - मुझसे । रिज़य - निज । रिंगरु निश्चित रूप से । - 1 ५६ - ६० ] ६ दुख शत्रु करत दिन केते गये, सेहिरिए गम्भु मास कुछ भए । आह भए पूरे बस्त मास, सु जम्मु भी पूरिष मास जीवयेउ धरि मंदण भयंज, घर घर कुटंब बघाऊ गयउ । गावहि गीतु नाइका सकु, चउरी पूरिज मोतिन्ह कु ॥ महोउ - महोत्सव पिव पितृ-पिता- प्रिय । अर्थ:- राज करते हुये ( सुख भोगते हुये ) कितने ही दिन बीत गये । कालान्तर में सेठाणी को गर्भ रहा जो दो मास का हो गया फिर दम मास पूरे हो गये । पुत्र का जन्म हुआ और सबकी याशा पूरी हुई ||५६।१ गभु गर्ने । 1 जीवदेव के घर जब पुत्र उत्पन्न हुआ तो उसके कुटुम्बियों द्वारा घर-घर मैं बघावा गाया गया । स्त्रियां उत्साहपूर्वक गीत गाने लगी तथा उन्होंने मोतियों के चौक पूरे ॥६०॥ उत्साहपूर्वक । - नद्रिका - नायिका - स्त्री । उकुस उत्क [ ६१-६२ ] चेहि तंबोस त फोफल पारा, दो चोर पटोले पारी । लोरि, दोने सेठ बाम दुइ कोडी ॥ लुल वधाए नाही •
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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