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स्तुति खण्ड
[ १. ] चक्केसरि रोहिरिण जयसारु, जालामालरिंग अरु खेतपातु । अंबिमाइ तुब मबऊ सभाइ, पदमावती कह लागउ पाई ।।
अर्थ :-देवी चक्र श्वरी, रोहिणी, ज्वालामालिनी तथा क्षेत्रपाल (देव) की जय हो । माता अम्बिका को भी भावपूर्वक नमस्कार करता है तथा पपावती देवी के पाय लगता हूँ।
सभाइ -- स ! भाव-भावपूर्वक ।
। ११ ] जे चवीस अख' जविखरणो, ते पणमा सामिरिण मापुरिण । कुमद्र कुमुधि वि महु हरह, पविह संघह रज्या करहु ।।
अर्थ :-जो चौबीम यक्ष यक्षिणियां हैं, (तथा जो) स्वयं ही (बिन शासन) को स्वामिनी हैं उन्हें नमस्कार करता हूँ। हे देवियों, मेरी विकृत मति एवं विकृत बुद्धि का हरण कशे तथा चतुर्विध संघ की रक्षा करो।
जक्ख - यक्ष । कुमद - कुमति। सामिणों – स्वामिनी । रख्या – रक्षा। चउविहसंघह - चविध संघ-मुनि, प्रायिका. धावक थाविका इन चारों का संघ कहलाता है। १. 'जख' मूलपाठ है ।
इंच वहण जम रिज जाणु, वरुणु धाय पणदुवि ईसाणु । परणमउ पोमिरिणवद धररिंगदु, रोहिणीकंतु जयज पहिचंदु ।।
प्रर्य .--न्द्र, अग्नि, यम, नैऋत, वरुण, वायु, कुबर तथा ईशान तथा पद्मावती देवी के पति धरौद्र को नमस्कार करता हूँ नया रोहिणी देवी के स्वामी चन्द्रदेव की जय हो ।