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जिरायत चरित
( शारदा का प्रकट होना )
[ १७
घनरु
सुखित्रि वयण सारव यौ कहै, मेरठ श्रन्त न कोई सह । किमड का श्राहि मोह
मांहि ॥
अर्थ :- प्रार्थना को सुनकर शारदा यों कहने लगी "मेरा पार कोई नही पा सकता है । किस कार्य के लिये तू मेरी आराधना करता है ? मैं तुझ पर संतुष्ट हुई तू मांग, मांग | "
प्राराह
]
आराघ्-आराधना करना। संतु संतुष्ट ।
भराड सुदर करि सुधन भाउ, तह पसाइ पारण घवरु लहर,
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[ १८ ]
अर्थ :- कवि शुद्ध भाव करके कहता है- निश्चित रूप से यदि तुमने मुझ पर प्रसाद किया है तो तुम्हारे प्रसाद से अपार ज्ञान प्राप्त करू जिसमे मैं जिसादत्त-वरित को कह सकूं ।
J
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!
जा निरु अहं किउ पसाज | ता जिरणदत्त श्ररित हट कहउ ।।
भाउ नाव १ निरु निश्चित रूप से ।
गहवर, भारी, गम्भीर, अपार ।
गाण
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ज्ञान
।
( शारदा का वरदान )
[ १६ ]
सा भारती गुसाइरिग देवि, तूठी सारगंदे पभवि । सुकर कहा तू कहण समस्यु, खुहु सिरि रहें दिष्णु मह हत्यु ।।
अर्थ :- वह स्वामिति भारती (शारदा) देवी प्रसन्न होकर श्रानन्द के