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________________ 5 जिरायत चरित ( शारदा का प्रकट होना ) [ १७ घनरु सुखित्रि वयण सारव यौ कहै, मेरठ श्रन्त न कोई सह । किमड का श्राहि मोह मांहि ॥ अर्थ :- प्रार्थना को सुनकर शारदा यों कहने लगी "मेरा पार कोई नही पा सकता है । किस कार्य के लिये तू मेरी आराधना करता है ? मैं तुझ पर संतुष्ट हुई तू मांग, मांग | " प्राराह ] आराघ्-आराधना करना। संतु संतुष्ट । भराड सुदर करि सुधन भाउ, तह पसाइ पारण घवरु लहर, - [ १८ ] अर्थ :- कवि शुद्ध भाव करके कहता है- निश्चित रूप से यदि तुमने मुझ पर प्रसाद किया है तो तुम्हारे प्रसाद से अपार ज्ञान प्राप्त करू जिसमे मैं जिसादत्त-वरित को कह सकूं । J - ! जा निरु अहं किउ पसाज | ता जिरणदत्त श्ररित हट कहउ ।। भाउ नाव १ निरु निश्चित रूप से । गहवर, भारी, गम्भीर, अपार । गाण - ज्ञान । ( शारदा का वरदान ) [ १६ ] सा भारती गुसाइरिग देवि, तूठी सारगंदे पभवि । सुकर कहा तू कहण समस्यु, खुहु सिरि रहें दिष्णु मह हत्यु ।। अर्थ :- वह स्वामिति भारती (शारदा) देवी प्रसन्न होकर श्रानन्द के
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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