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________________ स्तुति खण्ड अर्थ: जो (शारदा) जिनेन्द्र भगवान के मुख से प्रकट हुई है, जिसकी सप्तभंगमय वाणी है, जो श्रागम, बंद एवं तर्क से युक्त है, ऐसी वह शारदा शब्द अर्थ एवं १६ की खान है। संभव जन्म | अस्ति ( २ ) स्यात् नास्ति (x) स्यात् अस्ति वक्तव्य नास्ति वक्तव्य । अस्थ पथं । - 1 ( ३ ) सप्तभंग - स्याद्वाद के सात सिद्धान्त (१) स्यात् स्यात् अस्ति नास्ति ( ४ ) स्यात् प्रवक्तव्य ( ६ ) स्यात् नास्ति श्रवक्तव्य ( 9 ) स्यात् प्रतितर्क । शारदा । सक्क पुठि पृष्ठ-पीठ । गय - पद | मारद | १५ 1 गुण रिप हि बहु विज्जागमसार, पुठि मराल सहद भविचार | छंद वहरि कला भावतो, सुकह रहू परब सरसुती । अर्थ: जो गुणों की निधि एवं विद्या तथा श्रागम की सार-स्वरूपा हैं, जो स्वभावत हंस की पीठ पर सुशोभित हैं जिसे बंद एवं बहत्तर कलायें प्रिय है, ऐसी सरस्वती को रह कवि नमस्कार करता है । । विज्जागम - विद्या और श्रागम | गुरिहि गुणनि थुइ - -J I सद्द शब्द । १६ 7 करि बुइ सुद्द ठरणव तु पात्र, परसबरे तु सारब माइ । महु पसाउ स्वामिनि करि तेम, जिस वरितु रचज हज क्रेम । पसाउ स्तुति । - ] अर्थ :- कवि स्तुति करके तुम्हारे चरणों में नमस्कार करता है हे शारदा माता ! श्राप प्रसन्न होओ। हे स्वामिनि, मुझ पर अपनी कृपा उस प्रकार करो जिस प्रकार मैं जिनइत चरित की रचना कर सकूं। प्रसाद कृपा । १. हु - मूलपाठ -
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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