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________________ जिहादत्त चरित इस पद्य में कवि ने दशों दिशाओंों के दस दिवालों को नमस्कार किया है । इद - इन्द्र | बरुणु - जल । ईशाणु ईशान । चंदु - सोम । - दहरण - अग्नि । वाय - वायु, पवन धरण - धनव-कुबेर | फोर्मिणिव पद्मिनी (पद्मावती ) । धदु धरद्र । मंगल अर्थ :- रवि, सोम, सुख का विस्तार करें। शुक्र, शनि, नव ग्रह जितागम में प्रसिद्ध हैं । - सूरु सूर्य दुइ दुख 1 १. इन्द्रो वह्नि पितृपति, नैऋतो वहरणोमरुल 1 कुबेर ईश: पतय: पूर्वादीनामनुक्रमात् । श्रमरकोश | विप सुक्क - शुत्रः । सिठ वृहस्पति । केज L १३ 1 · सूर सोम मंगल बहुउ, बुद्ध विहन्यद सुह विन्दर । शुक्रानि 'एजा ग्राम सिह ॥ - शिष्ट प्रतिष्ठित । ― -- जम केतु । - सुह-सुख । यम फेरिउ नैऋत दुःखों को भस्म करें। बुध एवं वृहस्पति राहु और केतु विशिष्ट ग्रह हैं, ये सभी - - यह दह दग्ध करना। बुह् बुध । विच्छरउ विस्तु फैलाना | गरिठ-गरिष्ठ-विशिष्ट । गढ़ ग्रह । - १. 'उ' मूल पाठ है । - (शारदा स्तवन ) [ १४ ] जहि संभव जिधर मुह कमल, सप्तभंगवाणी जसु श्रमत । प्रागम छंद तक्क वर वाणि, सारद सह अन्य पय लागि ।।
SR No.090229
Book TitleJindutta Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajsinh Kavivar, Mataprasad Gupta, Kasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages296
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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