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स्तुति खण्ड
साथ कहने लगी, "हे सुकवि तु कथा कहने में समर्थ है। हे रल्ह, तेरे शिर पर
मैंने अपना हाथ रख दिया है ।
गुसाइि
समन्धु – समर्थ !
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अख
चड यदि
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गोस्वामिनी-स्वामिनी । पमरण
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मृत्यू हा
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( कवि द्वारा लघुता प्रदर्शन ) [ २० }
उ उ जिरगवत पुराणु, पडिउ न सपखरण छंद वस्वाणु । मक्खर' मत होग जड़ होइ, मह जिए दो बेड कवि कोद्र ।।
अर्थ :- मैं जिनदत्त पुराण को कह रहा हूँ। मैंने काव्य के लक्षण एवं छंदों का बखान (वन) नहीं पढा है । इसलिये यदि कहीं प्रकार एवं मात्रा की हीनता हो तो मुझे कोई भी कवि दोष न देवें ।
क्या ख़्या कहना | अक्ज़र
१. श्रम्बर मूलपाठ ।
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I
२१]
होरा बुधि किए करेज कवित्त, रंजि रंग सक धम्म कथा यह वोसु, दुज्जरण सयण
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1
पत्र प्रकट प्रकट करना ।
प्र + मरण - कहना ।
अक्षर । मऩ
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मात्रा ।
अर्थ :- मैं होन बुद्धि है कविता किस प्रकार करू ? (क्योंकि) मैं विद्वानों के चित्त को प्रसन्न भी नहीं कर सकता हूँ । धर्मकया को प्रकट उमलिये दुर्जन एवं सज्जन ( दोनों
( प्रतिपादित ) करने में दोष होते ही है।
से ही प्रार्थना है कि वे ) रोष न करें ।
विवरण वित्त ।
कह जिष्णु रेसु ॥"