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यमराता और उसमें सफल होकर निकलता है । अपनी सूझ-बूझ से ही यह अंटि होकर मी राज्य प्राप्त करता है और वर्षों तक योग्यता पूर्वक शासन चलाता है । अन्त में वह वैराग्य धारण कर स्वर्ग प्राप्त करता है। महाकाव्य की जो विशेषताएं प्रस्तुत काव्य में मिलती हैं वे निम्न प्रकार हैं :
(१) जिनदत्त का कथानक पुराण मम्भत लिखा गया है । कवि ने उस में अपनी ओर से न कहीं जोडा है और न घटाया है । (२) नायक एवं उससे सम्बन्धित पात्रों की पूर्व भव की कथा अन्त्य कथा का एक अंग मात्र है। (३) यह काव्य अन्त में बैगम्य मुलक एवं शासरम पर्यवसायी है। नायक अन्त में मुनि बनकर रवर्ग लान करता है और उसकी चारों पत्तियाँ भी स्वर्ग जाती है।
(x} पस्न त कान्ध में गलौकिक तन्तों का समायणा हआ है। जैसे अजनी मूल से अपने प्राप को प्रच्छन्न करना, विद्याधरों से विद्याओं को प्राप्त करना, आकाग मार्ग से विमान में बसकर जिन त्या नयों की वन्दना करना, अपने बाहुबल से सागर पार करना, बौना बन कर अनेक कौतुक करना तथा मदोन्मत्त हाथी को वश में करना आदि ।
(५) प्रारम्भ में तीर्थकरों की मन नि की गयी है। गरस्वती का स्मरण एवं फाट्य रचना का उद्देश्य बतलाया गया है । इसके अतिरिक्त विनम्रता का प्रदर्शन, हीनता का प्रमाणन करते हा लोक भापा में काय लिखने का हेत धसाया गया है।
इस प्रकार उ विशेषताओं के प्राचार पर जिगादत्त परित' महाकान्य कोटि में आ सकता है किन्भु इममें वर्णनों की कमी है, हॉली का चमत्कार नहीं है. और न छंद विधान में किसी प्रकार की विशिष्टता लाने का प्रयास किया गया है । इसमें यह स्मना एक उदात्त व्यक्ति का चरित-काव्य ही पानी नानी माहिए।
नौबीम