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अपने काव्य में २४ प्रकार की 'वकार' एवं २४ प्रकार की 'सकार' नाम वाली जातियों के नाम गिनायें है जो उस समय वसंतपुर में रहती थी। उस नगर की एक और विशेषता यह थी कि २० प्रकार की 'मकार' वाली जातियाँ वहाँ नही थी जिनसे उस नगर का वातावरण सदैव शति एवं पवित्र रहता
था ।
प्राकृतिक सौन्दर्य वर्णन
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काव्य में प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन भी यत्र तत्र मिलता है। कवि को पेष्ट पोधों एवं फल-पुष्पों से अधिक प्रेम था इसलिये उसने नगर वन के साथ उनका भी वर्णन किया है। सागरदस सेठ के उद्यान में विविध पौधे थे । अशोक एवं केवडा के वृक्ष थे। नारियल एवं आम के वृक्ष थे । नारंगी, छुहारा, दाख, पिंडखजूर, सुपारी, जायफल, इलायची, लोग यदि कितने ही फलों के नाम गिनाये हैं पुष्पों में मरुमा, मालती, चम्पा, रायचम्पा, मुचकन्द, मोलसिरि जपापुष्प, पाडल, कठ पाइल, गुडहल आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इस प्रकार का वर्णन हिन्दी की बहुत कम रचनाओं में मिलता है। समारु कवि ने भी आगे चलकर प्रद्युम्नचरित (सं. १४११ ) में भी इसी तरह का अथवा इससे भी विशद वर्णन किया है। परवर्ती अपना काव्यों में भी ऐसे वर्णनों की प्रमुखता है ।
रह कवि ने इन वृक्षों पौधों एवं लताओंों के नाम उनकी विशेषता सहित गिनाये हैं । कवि के शब्दों में ऐसा ही एक वर्णन देखिये :
किए ।
जो असोक करि विक सांगु, अन पर परितहि दीनउ मांगु । जो सिर रहिउ केवडउ, सिचित्र खीर भयो रुवडउ || १६६ ॥ जे नालियर कोपु करि थिए, तिन्हई हार पटोले जे छे सूकि रहे सइकार, लिन्छु अंकमाल दिवाए बाल ॥ १७० ॥ नारिंगु जंबू छुहारी शख, पिंडखजूर फोफिली प्रसंख 1 जातीफल इलायची लवंग, कररणा भरणा कीए नवरंग || १७१ ||
पैतीस