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जलसोखरणी, जलस्तीमनी, हृदयालोकिनी, अग्निस्तंमिनी, सर्वसिद्धि विद्यातारिणी, पातालगामिनी, मोहिनी, अंजणी, रत्नवषिरणी, शुमदशिनी, वजरणी मादि विधानों के नाम उल्लेखनीय हैं । जिनदत्त ने वहाँ तिमिरवृष्टि विद्या मणीबंध एवं सौषध विद्याएँ भी प्राप्त की थी। विद्यायल से ही उसने विमान बनाया और प्रकृत्रिम चैत्यालयों की बन्दना की 1 | चम्पापुर पहुँच कर वहाँ राज दरबार में बौने के रूप में जो उसने अपनी विद्यानों का प्रदर्शन किया और मदोन्मत्त हाधी को वश में किया वह सब उसकी प्राप्त विद्याओं के प्राधार पर ही था । जैन काव्य एवं पुराणों में इसी तरह को विद्याओं का बहुत वर्णन मिलता है। जैन काव्यों के नायक प्रायः ऐसी विद्याएं प्राप्त करसे हैं और फिर उनके सहारे कितने ही प्रलौकिक कार्य करते हैं । विवेश यात्रा
कवि के समय में मारत व्यापार के लिए अच्छा माना जाता था । व्यापारी लोग समूह बनाकर तथा बलों पर सामान लाद कर एक देश से दूसरे देषा एवं एक नगर से दूसरे नगर तक जाया करते थे । कमी नावों से यात्रा करते तो कभी जहाज में चढ कर व्यापार के लिये जाते । इस व्यापारिक यात्रा के समय एक प्रमुख चुन लिया जाता था और उसी के प्रादेगानुमार सारी छपवस्था चलती थी । जिनदत्त जब व्यापार के लिए निकला तो रचना के अनुसार उसके संघ में १२ हजार बैल थे एवं अनेक चरिणक-पुत्र थे । सिंहस द्वीप उस समय व्यापार के लिये मुख्य आकर्षण का केन्द्र स्थान या । वहाँ जवाहरात का खून व्यापार होता था । लेन देन वस्तुओं में अधिक होता था । सिक्कों का चलन कम ही था । ऐसे अवसरों पर व्यापारी म्बूब मुनाफा कमाते थे । नाविक एवं जहाज के कप्तान जलजंतुओं का पूरा पता लगा लिया
१. पायउ जगमगंतु सो तित्थु, जीवदेव नंदणु हइ जित्थु । विज्जा चयइ निसुरण जिणदात, इंदि अकिट्टमि जिसमलचत्तु ।।
सैतीस