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करते थे । वे अपने साथ मुद्गर एवं लोहे की सांकल भी रखा करते थे । समुद्र में बड़े बड़े मगर रहते थे, उनसे बचने का उपाय भी वे लोग भली प्रकार जानते थे । व्यापारिक यात्रा से वापिस लौटने पर उनका राजा एवं प्रजा द्वारा बड़ा स्वागत-सत्कार किया जाता था । उन्हें उचित रीति से सम्मानित करने की भी प्रथा थी ।
इस प्रकार जिदत्त हिन्दी के प्राधिकान की एक उत्कृष्ट रचना है भाषा है उसको हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त होगा ।
ग्रंथ सम्पादन
भव: जल्दी में लिखे
'णित चरित' को पर्याप्त खोज करने के पश्चात् भी कोई दूसरो प्रति उपलब्ध नहीं हो सकी । इस कारण इसका सम्पावन एक ही प्रति के आधार पर किया गया है और इसी कारण से इसके पाठ भेव प्रादि नहीं बिये जा सके। फिर भी हमें संतोष है कि ऐसे प्राचीनतम हिन्दी काव्य का [सम्पादन एवं प्रकाशन हो सका है। मूल प्रति प्रारम्भ में काफी स्पष्ट लिखी हुई हैं लेकिन अन्त के कुछ पृष्ठ प्रतिलिपिकार ने हैं। इसलिये उसने प्रारम्भ के समान भागे प्रत्येक पद्य दी है। फिर भी प्रति सामान्यतः शुद्ध एवं स्पष्ट है। लिये मूल ग्रंथ का हिन्दी अर्थ भी दे दिया गया है तथा पछों के नीचे महत्वपूर्ण शब्दों के अर्थ एवं उनको उत्पति तथा अन्त में विस्तृत शब्दकोश अर्थ सहित बिया गया है। हिन्दी शब्दकोष के विद्वानों को इस काव्य में कितने हो नये शब्द मिलेंगे जिनका संभवतः अभी तक अन्य काव्यों में उपयोग नहीं हुप्रा है ।
के प्रागे संख्या भी नहीं
पाठकों की सुविधा के
जिदत्त चरित के समान राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों में और भी महत्वपूर्ण काथ्य उपलब्ध हो सकेंगे ऐसा हमारा विश्वास है इसलिये इस विशा में विशेष प्रयत्न की प्रावश्यकता है
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