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थे । वे कमी-कमी अपने साथ लड़के का चित्र भी ले जाने थे। बारात खूध मन-धज के साथ निक नती थी । बारात की खातिर मी खूब को जाती थी। विवाह में सोनार होती थी । विवाह मण्डप में होता था जहां लोक पूरा जाता था । स्त्रियों माङ्गलिक गीत गाती थीं । दहेज देने की प्रथा तब मी खूध थी । जिनदत्त को चारों विवाहों में इतना अधिक दहेज मिला कि उससे सम्हाले न सम्हाला गया । पुत्र जन्म पर खूब स्तुशियां मनायी जाती थी। गरीवों अनाथों और अपाहिजों को उस अवसर पर खूब दान दिया जाता था । जिनदत के जन्म पर उसके पिता ने दो करोड़ का दान दिया था । भविष्यवाणियों पर विश्वास किया जाता था । राजा महाराजा कमी २ अपनो कन्याओं का विवाह भी इन्हीं भविष्यवारिंशषों के आधार पर कर दिया करते थे। समाज में बहु वियाह की प्रथा थी । राजाचण तो अनेक विवाह करते ही थे, बड़े-बड़े सेठ साहूकार एवं व्यापारी मी चार-चार पांच-पांच विवाह तक कर लिया करते थे और इन्हें कोई बुरा भी नहीं बतलाता था । जिनदत्त ने चार विवाह किये और नब भी उसका मारी नागत हुा । जिस समय को ध्यान में रखते हुए कथा
१, पंच सघद बाजेवि तुरंतु, बहु परिमणु चाले सु वरातु ॥१२०॥
एकति जाहि मुलासरण चढे, एकतु वास्त्रर मोडे तुरे । एकतु साजित सिगरी घरी, एकरगु साजि पनाणी वरी ॥१२१॥ एकति छाडी टोला जाहि, एकति हस्त चढे विगसाहि । एकति जाहि विवाहगु व श्ठ, मनु मिलि चंपापुरीहि पइठ ।।१२।। चंपापुरि कोलाहलु भयो, प्रागइ हानि विमलु पाइयो ।
२. राय सोय पुपु नीका की प्रज्ञ, कडड़ चूड करि मंडिय धीय ।
अह मनु चितिध दिन्नु निमः गु, तहि दियाइ रयगा अपमारण ॥२६५।।
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देहि तं बोल न फोफा पारण, दोणे वीर पटोने पाम्प । पुत देधाए नाहीं स्त्रोरि, दीने गेलि दाम दुइ कोडि ।।६१।।
सेतीस