________________
वीर रस का वर्णन जिनदत्त के स्वदेश लौटने के समय हुअा है। उसके अतुल वैभव, परिजन, सेवक एवं योद्धाओं को देखकर चन्द्रशेखर राजा उसे आक्रमण कारी राजा मानकर उनका सामना करने के लिये युद्ध की तैय्यारी करने लगता है । इसी प्रसंग को लेकर कवि ने कुछ पद्य लिखे हैं जिन्हें वीर-रस से युक्त कहा जा सकता है। जिला सेवा दश लाख घुडसवार, छह हजार हाथी एवं असंख्य ऊंट थे। पैदल एवं धनुषधारी दश करोड़ थे जब उसकी सेना ने अभियान किया तो धूल के उडने से सूर्य का दिखना बन्द होगया और जब निशानों को जोड़कर नोट मारी गई तो उसकी वनि से बहुत से नागरिक एवं राज्ञा देश छोड़ कर भाग गये । किसी राजा ने भी उसका सामना करने का साहस नहीं किया। जन्न वह असंतपुर के पास पहुँचा तो वहां की सारी प्रजा भागकर किले में चली गई। कारों और की परिखा को जल से भर दिया गया । राजा चन्द्रशेखर ने दरवाजे की रक्षा का भार स्वयं सम्हाल लिया । बारों दिशाओं में मुभट खरे हो गये,
१. लए तुरंग मोल दह लाम्न भइगल' छ सहस्र करह गम ख' । सहस बतीस जोडरिग.........., चाउरंगु वलु बन्नु दीन पवाणु ॥४५.१।। पाइक धाराक हद दह काडि, पयदल चलन रायसिहु जोडि । छत्तधारी बुसि गिरि जिन्हु पाहि, ते असंख रावत दल माहि।।४५२।। जिरणदत्त चलतहि कंपइ घररिंग, उत्थइ धलि न सुझर तरणी । हाकि निसारण जोडि जरा हरण, अपनइ देश फ्लाणे घणे ॥४५३।। कउणइ गरहिउ उटहि थाट, क (उरणइ) राय दिखालहि बाट । दूसह राज गण को मंगत्र, नाम कहा जइनी चक्वकवइ ।।४५४।। भाजइ नयर देश विमल......, पर चक भज न वि असिऊन सहहि । चाले कटक किए बहु रोल, अरि मंडल मरिण इल्ल कलोल ||४५५।। ठा ठा करत जोडि नीसरह, जाइति माय देश पइसारहि । परिजा भाजि गई जहि राज. बेदिउ सो वसंतपुरु ठाउ ||४५६11 परिजा भाजी, रहर महंत, लागी पउलि तिऊ भेजंत । भयउ होकुलि अरु गोफरणी, रने मार कहु सीसे घरणी ।।४५७।।
प्राइस