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जिन सूत्र भाग : 1
वृक्ष बनते-बनते समय लग जाए। यह हो सकता है कि तुम्हारे | हो जाएगी जितनी तुम्हारी वासना, उसी क्षण मुक्ति हो जाएगी। कृत्य में और तुम्हारे फल में थोड़ा समय का फासला हो। तो | जिस क्षण, आग में हाथ डालने से हाथ जलता है, यह सत्य शायद तुम जोड़ भी न पाओ कि किस कारण से दुख मिला। उतना ही गहरा उतर जाएगा जितना आग में हाथ डालने की प्रबल
जो समझ नहीं पाते, जाग नहीं पाते, दुख को जागकर भोगते | वासना गहरी है, उसी दिन वासना कट जाएगी। नहीं, वे चिंतन तो बहुत करते हैं, मनन तो बहुत करते हैं कि दुख | वृक्ष की शाखाओं को मत काटते रहो। उससे कुछ भी न न हो। ऐसा कौन होगा मनुष्य जो चाहता है दुख हो! दुख न हो, | होगा। जड़ें काटनी होंगी। जमीन में गहरे उतरना होगा। अपनी ऐसा तो सभी चाहते हैं। लेकिन चाह से थोड़े ही दुख रुकता है! | ही चेतना के अंधकार में दीये ले जाने होंगे। जो समझे हैं, उन्होंने तो पाया है कि चाह से ही दुख पैदा होता है। तो महावीर कहते हैं, सोचते हैं लोग, जानते-से भी लगते हैं, दुख न हो, इस चाह से भी दुख पैदा होता है। चाह मात्र दुख के किंतु विषयों से विरक्त नहीं हो पाते हैं। अहो, माया की गांठ बीज बोती है। फिर फसल काटनी होती है। चाह मात्र जहर है। । कितनी सुदृढ़ होती है! चिंतन, विचार तो बहुत लोग करते हैं।
बड़े आश्चर्यचकित हो महावीर कहते हैं: अहो! कैसी __महावीर कहते हैं : जाणिज्जइ चिन्तिज्जइ! लोग जानते भी हैं। आश्चर्यचकित करनेवाली है यह माया की गांठ! जानते. ऐसा भी नहीं कि नहीं जानते। लोग जानते हैं, कहां-कहां दुख | सोचते. सझते हए लोग भी अंधे हो जाते हैं। आंखवाले अंधे हो होता है, लेकिन फिर भी सो-सो जाते हैं। शायद जहां-जहां दुख जाते हैं! समझवाले भ्रांत हो जाते हैं! शांति के क्षणों में जो होता है, वहां-वहां मोह का बड़ा आवरण है। ऐसे ऊपर से सलाह तुम दूसरे को दे सकते हो, अशांति के क्षणों में खुद के ही लगता है कि आग में हाथ डालने से हाथ जलता है, लेकिन भीतर काम नहीं आती। अपना ही दीया बुझा लेते हो। अपनी ही कोई प्रबल वासना है जो बार-बार आग के पास ले आती है; जो सलाह के विपरीत चले जाते हो। अपनी ही समझ को फिर-फिर कहती है आग में हाथ डालो, बड़ा सुख होगा। तो यह जानकारी खंडित कर देते हो। आश्चर्यचकित करनेवाली बात है। ऊपर-ऊपर रह जाती है। तो जब भीतर की वासना प्रबल नहीं महावीर का वचन, 'अहो! माया की गांठ कितनी सुदृढ़ होती, तब तो तुम बड़े समझदार होते हो। वासना के अभाव में | है'-बड़ा सोचने जैसा है, बड़ा ध्यान करने जैसा है। महावीर कौन समझदार नहीं होता!
दुखित होते हैं तुम्हारे लिए, करुणा से भरे हैं। पर हंसते भी हैं कि जब तुम पर क्रोध का तूफान नहीं है, तब तुम भी समझदार होते मूढ़ता बड़ी गहरी है! हो; तुम भी समझा सकते हो, सलाह दे सकते हो कि क्रोध व्यर्थ | तुमने कभी किसी व्यक्ति को सम्मोहित दशा में देखा? किसी है, जहर है, अपने लिए दुख का निमंत्रण है। लेकिन जब क्रोध को सम्मोहित कर दिया जाता है, मूर्छित कर दिया जाता है। का आवेश उठता है, जब तुम आविष्ट होते हो, जब तुम तूफान | कठिन नहीं, बड़ा सरल है। कोई भी होने को राजी हो तो तुम भी में घिर जाते हो और क्रोध का बवंडर तुम्हारे चारों तरफ होता है, कर सकते हो। तब सब समझ खो जाती है। तो ऐसा लगता है, तुम्हारी समझ तो | कभी छोटा प्रयोग करके देखना। तुम्हारा छोटा बच्चा भी तुम्हें ऊपर-ऊपर है और क्रोध का उत्पात बहुत गहरा है; वहां तक | सम्मोहित कर सकता है, तुम भर राजी हो जाना। वह तुमसे तुम्हारा जानना नहीं है।
दोहराए जाए कि तुम गहरी तंद्रा में जा रहे हो, मूर्छा में जा रहे हो, सोचते हो. विचारते हो, पर सब सतह पर है, लहरों-लहरों में बेहोश होते जा रहे हो तुम स्वीकार करते जाना। तुम इनकार है। सागर की गहराई में तुम्हारा उतरना नहीं हुआ। वह जागने से मत करना कि नहीं। तुम यह मत कहना कि अरे, छोड़! तेरे ही संभव होता है, क्योंकि तुम चैतन्य हो। जितने जागोगे, जितने कहने से कि हम सोये जा रहे हैं, कहीं हम सो जाएंगे? तुम
चेतन बनोगे, उतने ही भीतर जाओगे। चैतन्य तुम्हारा स्वभाव प्रतिरोध मत करना। तुम सहयोग करना। तुम उसके सुझाव के है। चैतन्य तुम्हारी गहराई, तुम्हारी ऊंचाई है। तो जितने चेतोगे साथ बहे जाना। वह जो कहे, माने चले जाना। थोड़ी देर में तुम उतने ही गहरे उतरोगे। जिस दिन तुम्हारी चेतना उतनी ही गहरी पाओगे कि खो गये किसी बड़ी गहरी तंद्रा में। तब तुम्हारा
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