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हला सूत्रः
फिर-फिर भोगेगा, क्योंकि जो पाठ लेना था लिया नहीं, जो जाणिज्जइ चिन्तिज्जइ, जन्मजरामरणसंभवं दुक्खं।। सीखना था सीखा नहीं। उसे पुनः पुनः उसी विद्यालय में वापिस
न य विसएसु विरज्जई, अहो सुबद्धो कवडगंठी।। लौट आना पड़ेगा। 'जीव जरा, जन्म और मरण से होनेवाले दुख को जानता है, दुख को कोई जागकर भोगता है, तो अनुभव हाथ आता है। उसका विचार भी करता है; किंतु विषयों से विरक्त नहीं हो पाता अनुभव हाथ आता है कि दुख को मैंने ही पैदा किया था, कैसे है। अहो, माया की गांठ कितनी सुदृढ़ है!'
पैदा किया था, अब दुबारा वैसा न करूंगा। इसकी कोई कसम जीवन में गुजरते तो हम सभी एक ही राह से हैं। उसी राह से नहीं लेनी पड़ती, न कोई व्रत लेना पड़ता है; क्योंकि व्रत और महावीर भी गुजरते हैं। राह में कोई भेद नहीं है। जीवन का कसमें तो सब नासमझी के हिस्से हैं, वे तो सोनेवाले आदमी की ताना-बाना एक जैसा है। विस्तार में थोड़े फर्क होंगे। कोई इस तरकीबें हैं। जिसने एक बार देख लिया कि आग में हाथ डालने गांव में पैदा होता कोई उस गांव में, कोई इस देह में कोई उस देह से हाथ जल जाता है, वह किसी मंदिर में, किसी साधु के सत्संग
की तरह कोई पुरुष की तरह, कोई गरीब कोई में प्रतिज्ञा नहीं लेता कि अब आग में हाथ दुबारा न डालूंगा। अमीर-ये विस्तार के भेद हैं, लेकिन जीवन का ताना-बाना समझ आ गयी। एक ही है।
समझ काफी है। प्रतिज्ञा से समझ का कोई संबंध नहीं है। जन्म, जीवन, मृत्यु-और सब में अनुस्यूत दुख की धारा है। नासमझ प्रतिज्ञा लेते हैं। नासमझ व्रत लेते हैं। समझदार तो कहां जन्मे, इससे फर्क नहीं पड़ता। कहां मरे, इससे फर्क नहीं समझ से जीना शुरू कर देता है। वही उसका व्रत है, वही उसकी पड़ता। जन्म और मृत्यु का स्वाद तो एक ही है।
प्रतिज्ञा है। सभी एक ही रास्ते से गुजरते हैं। फिर भी उसी रास्ते से सभी एक बार देखा कि हाथ जल गया, अब दुबारा जलना मुश्किल अलग-अलग अनुभव और निष्कर्ष लेते हैं। घटनाएं तो हो जाएगा, क्योंकि हाथ मैं ही डालूं तभी जलता है। एक-सी घटती हैं, लेकिन जीवन के निष्कर्ष बड़े अलग हो जाते आग का स्वभाव जलाना है। लेकिन आग तुम्हारे पीछे नहीं हैं। और जब तक कोई घटना अनुभव न बने, तब तक घटीन दौड़ती; तुम ही आग में हाथ डालो तो ही जलते हो। तो अपनी घटी बराबर।
ही बात है, अपना ही निर्णय है, अपना ही दायित्व है। डालें तो दुख आता है-सभी को आता है। दुख भोगा जाता है। जलेंगे, न डालें तो नहीं जलेंगे। यद्यपि जीवन इतना सरल नहीं लेकिन दुख भोगना दो ढंग से हो सकता है : कोई जागकर भोगता है। आज हाथ डालते हो, हो सकता है कल पता चले, जला। है, कोई सोए-सोए भोगता है। जो सोए-सोए भोगता है वह खबर आते-आते देर लग जाए। बीज की तरह जो आज घटा है,
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