________________
२८-१२-५६
सडक पर से जब हमारा लम्बा काफिला गुजरता है तो लोगो के मन में अनेक प्रकार के प्रश्न पैदा हो जाते हैं । न जाने मनुष्य के मन मे क्यो इतनी जिज्ञासाए रहती हैं कि वह प्रत्येक बात का मूल खोजना चाहता है। सबसे अधिक प्रश्न जो आजकल हमे पूछा जाता है वह है आप कहाँ से आए हैं और कहाँ जाएगे ? आने के लिए तो हम कह देते है कि हम कलकत्ते से आए हैं पर जाने के लिए क्या कहा जाए ? भला जिनका अपना कोई स्थान नहीं, उनके गन्तव्य के बारे मे क्या कहा जा सकता है ? इसीलिए इसका उत्तर देने मे हमे बडी कठिनाई हो जाती है । यदि यह कहा जाए कि हमारा कोई स्थान नही होता तो प्रश्नकर्ता को इसका विश्वास होना कठिन हो जाता है । फिर एक के बदले तीन प्रश्न होते हैं। इतना समय कहा रहता है कि हम इतनी लम्बी प्रश्न सूची का उत्तर देते चले जाए। यदि हम यह सोच लें कि आज प्रत्येक जिज्ञासु के प्रश्न का उत्तर देना है तो मैं सोचता हू अगली मजिल बडी लम्बी हो जाएगी। सुबह के बदले शाम तक भी अगले गाव पहुचना कठिन हो जाएगा। अत. लोगो को थोडे मे निपटाने के लिए कोई साधु अपने अस्थायी गन्तव्य दिल्ली की ओर सकेत देता है तो कोई राजस्थान की ओर । पर इसमे भी बडी उलझन है । साईकिल पर बैठे एक व्यक्ति ने मुझे पूछा-स्वामीजी आप आगे कहा जाएगे?
मैंने कहा-अभी तो हम दिल्ली जा रहे हैं।
व्यक्ति--यह क्या आपके पिछले साथी तो कह रहे थे कि हम राजस्थान की ओर जा रहे हैं और आप कहते हैं दिल्ली जाएगे ।