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बीच मे जे० एस० कालेज मे पचासो शिक्षको तथा पन्द्रह सौ विद्यार्थियो के बीच आचार्यश्री ने भाषण किया। प्रवचन बडा प्रभावशाली रहा । अध्यापको तथा छात्रो का उत्साह भी सराहनीय था। पीछे पता चला कि उन लोगो ने आचार्यश्री के भाषण का टेप-रिकार्डिंग भी कर लिया था। ___ आचार्यश्री को प्रवचन करने मे थोडा विलम्ब हो गया था। अतः कुछ साधु आगे चलने लगे। पर अगले गाव के दो रास्ते थे । एक जरा सीधा और दूसरा कुछ घुमावदार । सीधे रास्ते मे ककर बहुत थे तथा दूसरे रास्ते मे चक्कर अधिक था । कुछ साधु सीधे रास्ते चले गए और कुछ साधु घुमाव लेकर सडक वाले रास्ते चले गए। दोनो आखिर मिल तो गए ही पर सीधे जाने वालो के पैर ककरो से फूट गए । निश्चय ही सीधे चलने वालो को कष्ट तो उठाना ही पड़ता है पर वे लक्ष्य पर भी बहुत शीघ्र पहुचते है। धुमाव लेने वाले भी लक्ष्य पर तो पहुचते ही हैं पर कुछ देर से । महाव्रत और अणव्रत के पार्थक्य को समझने के लिए यह उदाहरण बडा स्पष्ट था। ___ हम सडक पर से होकर गुजर रहे थे। एक ग्रामीण भाई हमसे पूछने लगा- क्या आप खादी वेचते है ? हमारे कधो पर रखे हुए बोझ को देखकर यह प्रश्न करना स्वाभाविक ही था। दूसरे हम पैदल चल रहे थे । चेहरे पर दैन्य तो था ही नही । अत पुरानी वेशभूषा मे छिपे हुए व्यक्तित्व को देखकर उसके मन में आज से बीस वर्ष पहले के स्वतन्त्रता संग्राम की कल्पना साकार हो उठी। और वह पूछने लगाक्या आप खादी बेचते हैं ? ___ हमने सयत स्वरो मे उत्तर दिया-नही भाई । हम लोगतो पद-यात्री है और अभी दिल्ली जा रहे हैं। दिल्ली का नाम लेते ही उसकी कल्पना एक साथ वर्तमान युग पर आ टिकी। कहने लगा तो क्या दिल्ली मे