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हुए कहा - आप अणुव्रत के माध्यम से जन-जन को जागृत करने का जो महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं, उसका मैं सदैव प्रशसक रहा हूं । अनास्था के इस युग मे सत्पथ पर चलना बहुत ही बडी बात है । फिर भी श्राप जनता को यह रास्ता दिखा रहे हैं, यह समाज के लिए बहुत ही उपयोगी है । मूल्याकन परिवर्तन की यह प्रक्रिया शान्ति तथा चरित्र को महत्व देगी ।
आचार्यश्री ने प्रधानमंत्री को बताया कि मध्यम स्तर के लोगो पर नान्दोलन का अनुकूल प्रभाव पड रहा है, पर उच्चस्तरीय लोग अब भी मुडने के लिए तैयार नही हैं। इस बार भारत की महानगरी कलकत्ता मे हमने देश-प्रतिष्ठित उद्योगपतियो की एक सभा करने का प्रयत्न किया था । पर वह सफल नही हो सका ।
प्रधानमंत्री - क्यो ?
आचार्यश्री — इसलिए कि लोग साधुओ के पास आने मे सकोच करते है । विशेष कर हम लोग जव प्रवचनो मे अनतिकता के बारे में खुलकर कहते हैं तो वे लोग उसे सहन नही कर सकते । यद्यपि व्यक्तिगत रूप से अनेक उद्योगपतियो से मेरी बातें हुई थी। पर सामूहिक रूप से कोई मोड लेना उनके लिए असंभव था । उन्होने मुझे स्पष्ट रूप से कहा कि दूसरे स्थानो पर जब प्रतिज्ञाए करवाई जाती है तो हम बडी तत्परता के साथ अपना हाथ ऊचा कर देते है । पर आप लोगो के सामने प्रतिज्ञा करने का हम बडा भारी महत्त्व समझते हैं । ऐसा लगता था उनमे साधु लोगो के प्रति श्रद्धा तो है । पर केवल श्रद्धा से कौन-सा काम चल सकता है ? तदनुकूल श्राचरण करना भी आवश्यक है ।
फिर चीन के नए रुख पर चर्चा करते हुए आचार्यश्री ने प्रधानमंत्री से पूछा- कुछ लोगो का ख्याल है कि दलाई लामा को शरण देने