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२३-२-६०
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गोलसर मे हम लोग जैन भवन में ठहरे थे । जैन भवन रतनगढ निवासी जुहारमलजी तातेड द्वारा अभी हाल ही मे बनाया गया था । उनको वडी भावना थी कि आज तो आचार्यश्री यहा ही ठहरे। इसीलिए उन्होने बहुत प्रार्थना की । पर आचार्यश्री के पास इतना समय कहा था ? आचार्यश्री कहा करते है- मेरे पास अनेक चीजो की बहुलता है। पर समय की बहुलता नही है । बहुत सारे लोगो के पास समय की बहुलता है अत यो ही वातो मे बैठे-बैठे उसे बिता देते है । मेरा उनसे अनुरोध है वे अपने समय का दान मुझे कर दें ।
कलकत्ते से आते समय मार्ग मे रोकने वालो को वे समझाते - भाई हमे अभी सरदारशहर जाना है । वहा हमारे एक वृद्ध साधु है, एक दूसरे साधु अनशन कर रहे हैं अत मुझे उनसे मिलना है । अव मंत्री मुनि भी दिवगत हो चुके है और मुनिश्री सुखलालजी भी निर्वृत्त हो चुके है । सरदारशहर भी पीछे रह चुका है । पर श्राचार्यश्री उसी वेग से चल रहे हैं । द्विशताब्दी समारोह सामने जो है । तव तक हर हालत में राजसमद पहुचना ही पडेगा । अत इतना थोडा चलकर दिन भर कैसे रुका जा सकता है ? आचार्यश्री ने उन्हे बहुत समझाया पर वे किसी तरह नही माने । एक प्रकार से उनके नम्र अनुरोध ने हठ सा ही पकड लिया । अत. आज दिन भर और रात भर आचार्यश्री को गोलसर मे ही ठहरना पडा ।
मैंने अनेको वार देखा है श्राचार्यश्री अपने निश्चय पर अडिग रहते हैं । जो कुछ कह देते है उसे भरसक पूरा करने का प्रयत्न करते हैं ।