________________
२८-३-६०
आज विहार कर आ रहे थे तो मार्ग मे जगल में एक किसान और उसकी पत्नी हमे मिले । पास मे आते ही उन्होने हमे प्रणिपात किया । उस अपरिचित युगल को देखकर हमारा प्रश्न सहज ही निकल पडा, कहां से आये हो भाई ?
पुरुष कहने लगा-यही सामने हमारा गाव है। आचार्यजी का दर्शन करने के लिए आये है।
हम-तब तो तुम बहुत दूर आ गये ?
किसान-अरे! हम दूर कहा भा गये है ? दूर से तो प्राचार्यजी पा रहे है।
१५०० मील क्या कम दूर है ? हमारे तो घर बैठे गगा आई है। उसका स्वागत करने इतनी दूर भी नहीं आते ? हमने देखा तपस्या मे कितना प्रभाव है । अवश्य ही आचार्यश्री बहुत दूर से चलकर आ रहे हैं उन्हे अनेको कष्ट भी उठाने पडे हैं पर जन-मानस पर इसका प्रभाव भी कम नही है। यही कारण है कि अनेको लोग यह समझ कर कि प्राचार्यश्री इतना कष्ट सहन करते है तो हमे भी इसका थोडा-सा रसास्वादन करना चाहिए, पैदल चलने लग रहे है। बुड्डी-बुड्डी बहनें और छोटे-छोटे बच्चे भी इसीलिए उत्साह से आचार्यश्री के साथ पैदल चल रहे है ।
ग्रामीणो मे भी इस ओर अच्छा प्रभाव है। प्रायः लोग श्रद्धाशील हैं। पर असवर्ण लोग इस ओर बड़े ही बुझे हुए हैं। आज ही मैं और