Book Title: Jan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Meghraj Sanchiyalal Nahta

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Page 220
________________ २१२ केवल मेरा ही अपमान नहीं है अपितु सारी नारी-जाति का अपमान है। इसे मैं नहीं सह सकती। पर पति भी अपनी बात पर अटल था। उसे बिदामीवाई से और कोई भी अपेक्षा नहीं थी। वह केवल एक ही बात चाहता था कि उसकी पत्नी को भी वही धर्म स्वीकार करना पड़ेगा जिसका आचरण वह कर रहा है । बढ़ते-बढते वात बढ गई और यहा तक बढ़ गई कि बिदामीवाई ने स्पष्ट शब्दो मे कह दिया-~-भले ही आप दूसरी शादी करलें मैं अपना धर्म नहीं छोडूगी । मुझे अपनी बुमा (पिता की वहन)की तरह ब्रह्मचारिणी रहना स्वीकार है पर मैं अपने सम्यक्त्व को कभी नहीं छोड़ सकती। सम्प्रदाय के रग मे रगे हुए पतिदेव ने अन्ततः दूसरी शादी कर ली। बिदामी वाई परित्यक्ता होकर अपने पिता के घर रहने लगी। आज उसकी उम्र करीव ३० वर्ष की है पर फिर भी वह अपने पिता मगलचन्दजी के घर पर ही रहती है। बीच-बीच में वह अपने ससुराल भी चली जाती है पर अपनी सम्यक्त्व पर वह उतनी ही अटल है जितनी पहले थी। उसके मन मे न पति के प्रति विद्वेष है और न उनके धर्म के प्रति कोई आकर्षण । शाति पूर्वक वह अपना जीवन व्यतीत कर रही है। इस वृत्तान्त के बीच विदामी बहन की बुआ का जो एक वृतान्त आया है वह भी एक विचित्र घटना है । बचपन मे उसे ससार से विरक्ति हो गई थी अतः अपने पिता से उन्होने निवेदन किया कि मैं सयम के मार्ग पर अपने चरण वढाना चाहती है। किन्तु पिता इस बात को सुनते ही एकदम सहम गए और कहने लगे-नही पुत्री । हमे ऐसा काम नहीं करना है। हमारा घर एक सम्पन्न घर है और मैं नहीं चाहता कि एक सभ्रान्त पिता की पुत्री साधुत्व ग्रहण कर घर-घर भीख मागती फिरे । अत मैं तुम्हे साधुत्व ग्रहण की आज्ञा कभी नहीं दे सकता । पर वह भी एक वीर महिला थी। उसने वार-चार अपने पिता को प्रसन्न करने का

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