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यथार्थ तत्वदर्शन तथा सयम जीवितव्य की ओर प्रेरित करने के निमित्त जो कुछ उन्होने किया वह भारत की अध्यात्म जागृति के इतिहास मे सदा स्वर्णाक्षरो मे लिखा रहेगा ।
साधना, त्याग एवं तप से निखरी उनकी लोकजनीन वाणी प्रसाद ओज एव सारस्य की एक सतत प्रवाहिणी निर्झरिणी थी । उनके द्वारा लिखे गए ३६ हजार पद्य नि सन्देह राजस्थानी वाङ्मय की एक अमूल्य निधि हैं ।
ज्यो-ज्यो तटस्थ वृत्ति से लोग निकट आते जा रहे हैं, श्राचार्य - भिक्षु द्वारा दिया गया तत्वदर्शन जो मूलतः भगवान् महावीर का ही दर्शन था, उनके हृदयगम होता जा रहा है । फलतः श्राचार्य भिक्षु से तथा उनके परवर्ती श्राचार्यो व श्रमणो से प्रतिवोध पा लाखो की सख्या में जन-समुदाय अध्यात्मोन्मुख बनता जा रहा है । मेरी यह सत्कामना है कि ऐसे प्रेरणादायी ऐतिहासिक प्रसग हमारे जीवन मे पुन पुन श्राएं । -हम परस्पर मिलें; श्रव्यात्म एव संस्कृति की चर्चा करें | आचार्य प्रवर जैसे महान पुरुषो के ससर्ग से जीवन के विकास पथ पर निरन्तर अग्रसर हो ।
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त मे प्राचार्य प्रवर द्वारा तथा समस्त श्रमरण-श्रमणियो द्वारा उद्गीत प्रयाणगीत से समारोह सम्पन्न हुआ । सहस्रो कठो से उद्भूत जयघोष से गगन-मंडल गूज उठा। चारो ओर परितोष एव श्रह्लाद की सुरसरी वह चली । सचमुच आज का यह पुण्य प्रसग सदा मानस पर अकित रहेगा।
समारोह की सम्पन्नता के बाद प्राचार्यश्री छत्री से गांव की ओर पधारे । सहस्रो नर-नारियो से गाव की गली-गली आकी थी । गाव मे आचार्यश्री ने तेरापथी सभा भवन मे प्रवास किया। मुख्यमत्री सुखाडियाजी -से कुछ देर बातचीत हुई। उन्होने तेरापथ द्विशताब्दी के विराट् आयोजन के प्रति अपनी हार्दिक उल्लास - भावना व्यक्त की ।