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वे घबराकर पुन. लौट आए। आगे का मार्ग इसलिए अवरुद्ध था कि भयकर अधड आ गया। दोनों ओर से अवरोध पाकर वे श्मशान की इस छत्री मे ठहरे। सभवतः उन्होने यह सोचा होगा कि एक दिन तो यहा आना ही है । अच्छा है पहले ही यहा का परिचय प्राप्त कर लें। ___ जब आचार्य रुघनाथजी को यह पता चला कि भीखरगजी छत्रियो मे रुके हुए हैं तो वे वहा आए और कहने लगे-भीखरा । याद रखना मैं लोगो को तुम्हारे पीछे लगा दूंगा। भीखएजी ने इसे गुरू का पहला प्रसाद माना और कहने लगे-यदि आप मेरे पीछे लोगो को लगा देंगे तो इससे बढकर मेरे लिए खुशी की और क्या बात हो सकती है ? दूसरी बात जो उन्होने कही-तुम आखिर जाकर जानोगे कहा ? जहा भी जानोगे वहा आगा तुम्हारा और पीछा मेरा। आचार्य भीखणजी ने इसे गुरू का दूसरा प्रसाद मानकर कहा- यदि आप ही मुझे आगे करना चाहते है तो मैं भी क्यो न आगे होऊंगा ? भिक्षु स्वामी की प्रत्युत्पन्नमति से रुघनाथजी पहले परिचित थे ही। आज ऐसी बातें सुनकर उन्हे बडा खेद हुआ। पर भिक्षु स्वामी तो अपने १३ साथियो के साथ सत्य की खोज में निकल चुके थे। वे जिस ओर चले, वही एक पथ वन गया। लोगो ने उसका नाम "तेरापथ" दे दिया। भिक्षु स्वामी ने इसका नियुक्त करते हुए कहा-हे प्रभो ! यह तुम्हारा ही पथ है।
विलग होते ही उन्हें बाधाओ का सामना करना पड़ा। उनका उल्लेख एक जगह उन्ही के शब्दो मे इस प्रकार हुआ है-म्हे उरणा ने छोड़ निसऱ्या जद पाच वर्ष तो पूरो अन्न पाणी न मिल्यो। घी चौपड तो कठे छै । कपडो कदाचित वासती मिलती सवा रुपया री। जद भारमलजी कहता पछेवडी आपरे करो। जद हू कहतो एक चोलपट्टो थारे करो एक चोलपट्टो म्हारे करो। आहार पाणी जाच कर सर्व साधू उजाड़ मे परा जाता । रूखरी छायां मे आहार पारणी म्हेलता, अने आतापना लेता। आथरण रा पछै गाम मे आवता । इण रीते कष्ट भोगवता, कर्म