Book Title: Jan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Meghraj Sanchiyalal Nahta

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Page 219
________________ ३-४-६० जैतारण एक वहुत प्राचीन गाव है । तेरापथ के इतिहास के साथ भी इसका गहरा सम्बन्ध रहा है । पर आज यहा साम्प्रदायिक भावना का एक जो उदाहरण सुनने को मिला वह सचमुच ही रोमाच कर देने वाला था । घटना यह थी कि यहा एक विदामी बहन नाम की तेरापथी बहन है | आज से लगभग १५ वर्ष पूर्व व्यावर के एक अन्य धर्मावलम्वी भाई के साथ उसका विवाह सम्बन्ध हुआ था | अनेको प्राशा और उज्ज्वल भविष्य के स्वप्नो के साथ जब उसने ससुराल में पैर रखा तो सबसे पहले उसके सामने प्रश्न आया कि उसे अपना धर्म परिवर्तन करना पडेगा । हालाकि वह और उसका पति एक ही धर्म के दो सम्प्रदायो के अनुगामी हैं, पर जहा निकटता होती है वहा प्रायः कटुता भी उतनी ही गहरी रहती है । अत ससुराल वालो की ओर से यह दवाव डाला गया कि उसे हर हालत मे अपना धर्म परिवर्तन करना ही पड़ेगा। इधर विदामी बाई भी अपने श्राप मे दृढ थी । वह और सब कुछ करने के लिए तैयार थी पर अपने धर्म को किसी भी मूल्य पर छोड़ने के लिए तैयार नही थी । इसीलिए सारे सम्वन्धो के यथावत् होने के बावजूद भी पति के साथ उसकी नही पट सकी । उसने बहुत श्रनुनय किया- मैं आपके घर मे आई हू, प्रत आप कहेगे वैसा करने के लिए प्रस्तुत हू, पर धर्माचरण जैसे प्रश्नो पर प्रत्येक व्यक्ति का अपना स्वतन्त्र अधिकार होता है । इस अधिकार को में कभी भी खडित होने नही दे सकती । आप मुझसे चाहें जितना काम ले सकते है । रोटी कपड़े के लिए मैं आपसे कोई श्राग्रह नही करती । पर ग्रात्म-साधना के बारे में आपका ही अनुकरण करूं, यह

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