Book Title: Jan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Meghraj Sanchiyalal Nahta

View full book text
Previous | Next

Page 208
________________ २०० मैंने कहा-एक तो उनका है तथा दूसरा उनके भाई का है, जो उनके ही पास था । अत. हमने दोनो पैन उनसे ही लिए है। ___आचार्यश्री की मुद्रा बदल गई और कहने लगे-हमे अपनी ओर से सावधानी बरतनी चाहिए। अधिक मूल्यवान पैन भी हमे नही लेने चाहिए। ___ मध्याह्न मे जब यहा से विहार हो रहा था बहुत सारे ग्रामीण एकत्र होकर प्राचार्यश्री के पास आये और विविध प्रत्याख्यान करने लगे। ___ इतने में एक व्यक्ति ने एक दूसरे व्यक्ति की शिकायत करते हुए कहा-महाराज | यह भाग बहुत पीता है अत. इसको भाग पीने का त्याग दिलवाना चाहिए । वह कुछ भागने सा लगा तो प्राचार्यश्री ने उसे ठहराते हुए कहा-दौडते क्यो हो ? हम तुम्हे बलपूर्वक तो कोई त्याग दिलवा नही रहे हैं । तुम्ही सोचो आखिर भाग पीने से क्या लाभ है ? वह कुछ लाभ भी नहीं बता सकता था और भाग पीना छोड़ भी नही सकता था। अतः उसने कहा-महाराज ! मुझसे यह नही छूट सकती। ___आचार्यश्री-क्यो? यह कोई रोटी थोडी ही है जो खानी ही पडे। यह तो एक नशा है जो तुम्हारी चेतना को आच्छन्न कर देता है । फिर भी वह तैयार नही हुआ । आचार्यश्री ने उसे फिर समझाया--देखो भाग के कारण तुम्हारे प्रति लोगो मे कैसी भावनाए हैं । सहसा उसके विचारो मे एक सिहरन हुई और इतनी देर तक ना, ना कहने वाला व्यक्ति कहने लगा अच्छा तो महाराज ! अव से भाग नहीं पीऊगा। __ आचार्यश्री-पर हमारे कहने से या सोच समझ कर ? किसानखैर आपके कहने से तो कर ही रहा है । पर आपने मुझे जो प्रेरणा दी है उससे मेरी आत्मा मे एक स्फुरणा हुई है और मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि भविष्य मे मैं कभी भांग नही पीऊगा । इतने मे प्राचार्यश्री ने शिकायत करने वाले व्यक्ति से पूछा--अब तुम

Loading...

Page Navigation
1 ... 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233