Book Title: Jan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Meghraj Sanchiyalal Nahta

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Page 211
________________ २०३ उनके स्वरो मे एक प्रतिस्पर्ध्य शक्ति दी है जिसे शहरो के अशुद्ध खाद्य और अप्राकृतिक वातावरण में सुरक्षित रखना बहुत ही कम सभव है । इसीलिए आचार्यश्री भी भक्तिरमसिक्त भजनो को सुनना पसद करते है और साथ ही साथ उनकी देशी रागिनी भी ग्रहण करते चले जाते हैं । उनके अतिरिक्त आवाल-वृद्ध पुरुपो में भी एक नया उन्मेष उतर प्राता है । बूढे आदमी जो घर मे खाटो मे पडे रह कर अपने जीवन की अतिम राह देख रहे होते है वे भी लाठी के सहारे प्रवचन स्थल पर पहुच जाते हैं । सचमुच उस समय का दृश्य लेख्य नहीं है । वह दृश्य ही है । अत. देखकर ही जाना जा सकता है। रात्रिकालीन प्रवचन करके आचार्यश्री विराम हेतु अपने शयन-विस्तर पर पाए ही थे, पूरे अवस्थित भी नही हो पाये थे कि एक गाव के कुछ भाइयो ने उन्हे घेर लिया और अपनी मर्म-व्यथा सुनाने लगे । वे सव परस्पर विशेष-विदग्ध थे । अनेक विषयो को काफी लम्बी अवधि से लेकर उनमे मतभेद था । यही मतभेद अव तीक्ष्ण होकर मन-भेद का वीज वन गया और वह भरसक प्रयत्न के उपरान्त भी निर्जीव नही हो रहा था । उस गाव के श्रावक समाज पर इस दूपित वायुमडल का बहुत अनिप्ट असर पड़ रहा था । अन्दर ही अन्दर यह मतभेद की खाई चौडी और गहरी होती जा रही थी। दल वदी ने अपने पैर खूब लम्बे पसार लिये थे । गुण-दर्शन के उचित मार्ग को त्याग कर दोनो ही पक्ष दोषदर्शन पर तुले हुए थे । प्रशस्य और श्लाघनीय विटप को तो एकदम ही उखाड फेंका था। बिलकुल स्पष्ट वात मे छल और प्रपच दीखता । इस समग्र ववडर का परिणाम बहुत विकृत था । इसलिए आचार्यश्री ने अपने मन में कुछ सूक्ष्म-सी भावना बना ली थी कि साधु-साध्वियो को चातुर्मासिक प्रवास के लिए वहा नही भेजना चाहिए । यह भावना जब थोडी प्रकाश मे आई और उस गाव के श्रावक-समुदाय ने सुनी तो काफी

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