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गुरू जो अपने पास पैसे रखे और तुम्हारी भी यह कमजोरी है कि तुम उन्हे गुरू माने हुए हो । वह तो अपना प्रभाव जमाने के लिए तुम्हे सव कुछ कहेगे पर तुम्हे तो आख खोलकर देखना चाहिए।
बहन-तो क्या प्राचार्यश्री हमे अपना शिष्य बनाएगे?
हम-क्यो नही? पर एक बात है गुरू बनाने के पहले तुम्हे उनका पूरा परिचय प्राप्त करना चाहिए। उनके क्या आचार-विचार है इसका अध्ययन करना चाहिए । फिर अगर तुम्हे वे अच्छे लगते है तो उन्हे गुरू रूप से स्वीकार कर सकते हो । और अच्छा तो यह हो कि तुम अपनी जाति के सभी लोग मिलकर प्राचार्यश्री से विचार-विमर्श करो।
वह वेचारी उसी समय धूप मे दौडी और अपनी जाति के पाच-चार मुखियो के पास गई उनसे कहा-हमे आचार्यश्री के पास चलना चाहिए। थोडी देर मे वापिस लौटी तो हमने पूछा-क्यो क्या हुआ बहन ।
कहने लगी-अभी तक हमारे लोग इसके लिए तैयार नही है। उनके मन में है कि आचार्यश्री को गुरू बनाएगे तो वे हमे जरूर कुछ न कुछ खाने पीने की चीजें छुडाएगे । वह हमसे हो सकता नहीं। तब उनके पास जाने से क्या लाभ?
हम-पर तुमको यह किसने कहा कि तुम आचार्यश्री को गुरू ही बनाओ । पहले विचार-विमर्श तो करो।
वहन-पर हमारे लोगो मे अभी तक उनके पास जाने मे सकोच है।
हम-यह सकोच तो मिटाना ही चाहिए। उसने फिर थोडा प्रयास किया पर चूकि आचार्यश्री को जल्दी ही आगे के लिए प्रयाण करना था। अत. वे लोग समय पर नहीं पहुच सके । इसीलिए प्राचार्यश्री से उनकी बातचीत नहीं हो सकी। फिर भी कुछ लोग आचार्यश्री के दर्शन करने के