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यदि सस्कृति को भी सत्व-सयुक्ता नही बनाया गया तो वह टूट सकती है। एक प्रसग उसके लिए आया-विवाह प्रसग पर अग्नि के साक्ष्य के स्थान पर स्वास्तिक साक्ष्य क्या काफी नही होगा ? अग्नि-साक्ष्य जहां वैदिक संस्कारो का परिचायक है वहा स्वास्तिक साक्ष्य जैन मगल अवबोध का सकेत है । तो क्या जैन लोग इस साक्ष्य को नहीं अपना सकते ? भले ही अग्नि साक्ष्य को वैधानिक मान्यता प्राप्त है पर स्वास्तिक-साक्ष्य को भी वैसा ही बनाया जा सकता है। इन सब आधारो पर नई मोड का प्रासाद बनाया जा रहा है।