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देव । मर्त्यलोक मे अमुक बनिया सतो का वडा भक्त है पर उसके कोई सतान नही है। अत आप कृपा करके उसे एक पुत्र का वरदान दीजिए । ब्रह्माजी थोडे मुस्कराए और वोले-~-नारद । तुम्हे इसका पता नही है । इसके सतान का योग नहीं है तब मैं उसे सतान कैसे दे सकता हू ? नारदजी कुछ बोल नहीं सके चुप रह गए ।
इस प्रकार वहुत दिन बीत गए । एक बार फिर एक मुनि उसके घर भिक्षा के लिए पाए । वह धर्मात्मा तो था ही प्रत उनकी बडी पावभक्ति की । वे भी उससे संतुष्ट हो गए और कहने लगे-वोलो वेटे । तुम्हे क्या चाहिए ? उसन पुन अपनी चाह मुनि के सामने प्रकट की तो मुनि ने उसे तीन बार वरदान दिया कि तुम्हारे पुत्र हो जाएगा। फलस्वरूप उसके तीन पुत्र हो गए। एक दिन फिर नारदजी घूमते-घामते उधर आ निकले तो उन्होने देखा--यहा तो वच्च आनन्द से खेल रहे है। उनके पाश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा और व वनिये से सारी बातें पूछने लग । बनिये ने सारा वृतान्त सरलता से उनके सामने प्रगट कर दिया । नारदजी पुनः ब्रह्माजी के पास गए और कहने लगे---- आप तो कहते थे कि उस बनिये के पुत्र का योग नही है तब ये पुत्र कैसे हो गए ? ब्रह्माजी ने कहा-नारद ये पुत्र मैंने थोडे ही दिए थे। ये तो अमुक ऋषि ने दिए थे । नारदजी का सिर उसी क्षण ऋपिजी के चरणो मे झुक गया और वे कहने लगे-सचमुच ऋपी परमात्मा से भी बढकर होते है । सो महाराज | साधु तो महान् ही होते है उनके दर्शन तो करने ही चाहिए पर मै वहा कैसे जा सकता हूँ? ___ मैं उसकी अज्ञता और विज्ञता दोनों को एक साथ देख रहा था। मैने देखा भारत मे अव भी साधुनो का कितना सम्मान है ? इस कहानी मे भले ही कोई विश्वास करे या न करे पर इसमे साधुग्रो के प्रति जितना आदर-भाव है उसे तो मानना ही पड़ेगा। अत यद्यपि साथ वाले सभी