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सत वापिस चले गए थे पर मैं उस श्रद्धालु से बातें करने का मोह नहीं छोड सका । मैंने उसे फिर आचार्यथी का परिचय दिया और समझाया कि तुम्हें जाकर आचार्यश्री के दर्शन करने चाहिए। वह केवल इसीलिए ही नहीं कि प्राचार्यश्री महान् है और उनसे बहुत कुछ प्राप्त हो सकता है। पर इसलिए भी कि वहा जाने से मकान मालिक के प्रति उसके मन मे जो तीव्र वृणा बैठी हुई है वह भी कम होगी। मैं नहीं जानता उस श्रद्धालु ग्रामीण ने जिसका मैं नाम नहीं जानता फिर वैसा किया या नही, पर उसने वहा जाना स्वीकार किया था। यह मैं अवश्य कह सकता हूँ और मुझे विश्वास है जितनी कठिनता से उसने मेरे सामने हामी भरी थी वह उसका तिरस्कार नही कर सकता।
हम वहा जिस मकान में ठहरे थे वह एक राईका जाति का मकान था। साधारणतया लोग उन्हें नीच और घृणित समझ कर उनसे बचना चाहते है । पर अब उनके मन में भी इसकी प्रतिक्रिया होने लगी है । उन्हे अपनी जाति पुछने पर एक वन ने बताया-मारे लोग राजा के वराबर बैठते हैं । हम भी आधे सिंहासन के भागीदार है । मैंने उनसे पूछा क्यो वहनो! तुम जानती हो प० जवाहरलाल नेहरू कौन है ? तो हस कर कहने लगी-वावाजी । हमे क्या पता पडितजी कौन है ? हमारे लिए तो अपना घर ही काफी है।
मैं क्या तुम कभी गहा (लाडनू) भी नहीं गई ? वहनें-नहीं। हमारे लिए तो अपना घर ही शहर है । मैं क्या तुम जानती हो आजकल हिन्दुस्तान मे राज्य कौन करता
बहनें -हा काग्रेम का राज्य है।
मैं-तुम्हे काग्रेस के राज्य में अधिक सुविधाए मिली कि राजाओ के राज्य में?