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किसान अपना ऊट लिए उधर आ निकला। हमें देखकर वह रुक गया
और कहने लगा आज तो हमारे गाव मे बहुत साधु आ गए । मैंने कहाहा, आज तुम्हारे गाव मे बहुत बडे प्राचार्य आए है। तुमने उनके दर्शन किए या नहीं?
किसान-नही मैंने तो उनको कभी नही देखा। मैं आज भी नही देखा? किसान-नहीं। मैं-क्यो?
किसान-इसलिए कि जिस घर मे आचार्यजी ठहरे है उस घर के लोगो से हमारा वैर है तब हम वहा कैसे जा सकते है ?
मैं-पर वैर तो लोगो से है आचार्यश्री से तो नही है ? उनके दर्शन के लिए क्यो नही जाते ?
किसान-हा यह तो आप ठीक कहते हैं सत तो परमेश्वर से भी बढकर होते हैं और यह कहते-कहते उसने एक कहानी प्रारम्भ कर दी।
एक गाव मे एक बनिया था । घर का भरा पूरा था। स्वास्थ्य भी अच्छा था । पत्ली भी वडी गुणवती थी। पर उसके कोई पुत्र नहीं था। वनिया इस चिंता से वडा दुखी रहा करता था। उसने ब्रह्माजी से वडी प्रार्थना की पर उन्होने उसे स्वीकार नहीं किया। एक बार अकस्मात् -नारद मुनि उसके घर पहुच गए। उसने उनकी वडी आवभक्त की नारदजी उससे सतुष्ट हो गए और कहने लगे-बोल भाई | तुम्हें क्या चाहिए ? उसने वडी नम्रता से कहा-भगवन् । आपकी कृपा से मुझे सब कुछ प्राप्त है । मैं पूर्ण संतुष्ट हू । पर देव ! मेरे कोई सतान नहीं है। यह चिंता मुझे रात दिन सताती है । नारदजी को उस पर दया आ गई और कहने लगे-अच्छा मैं इसका प्रयास करूगा और वे पुन' स्वर्गधाम को ओर लौट गए। वहा जाकर उन्होने ब्रह्माजी से निवेदन किया