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निवासियो को आत्म-निरीक्षरण की सलाह देना चाहूगा । द्विशताब्दी समारोह का कार्यक्रम आपके सामने हैं । बाल, वृद्ध, युवक लोगो से मेरा आह्वान है कि वे आगे आए और समाज के जीर्ण-शीर्ण तथा बोझिल ढाचे को बदल कर नई मोड -- नव-निर्मारण की ओर अग्रसर होवे । विशेष कर उन युवको से जो सुधार की लम्बी-लम्बी डी हाकते हैं, यह अवसर विशेष आह्वान करता है । यह ठीक है अभी तक नई मोड की कोई स्पष्ट कल्पना सामने नही आई है । पर वह कोई श्राकाश से तो श्राने वाली है नही । आप ही लोगो मे से कुछ लोग उसकी रूपरेखा को सष्ट करेंगे । अत उससे डरने की कोई श्रावश्यकता नही है । निश्चय ही वह कोई ऐसी योजना नही होगी जिससे जीवन पर बोझ श्रा जाए और वह चल ही न सके। यह तो जीवन को हल्का बनाने वाली योजना है। मैं आशा करता है परिवार के परिवार उसमे अपना नाम देगे और समाज को नई मोड देगे ।
उससे पहले श्री शुभकरण सुराणा ने आचार्यश्री को विदाई देते हुए अपने साथियो को ग्राह्वान किया था कि वे भी नई मोड के पथ पर ग्रागे बने । उन्होने स्वयं अपने परिवार को सभाव्य नई मोट के अनुसार ढालने का संकल्प कर सचमुच नवयुवको के मामने एक अच्छा आदर्श उपस्थित किया । श्राचार्यश्री उनकी भेंट से वडे प्रसन्न हुए और दूसरे लोगो को भी उनका अनुसरण करने का दिनामकेत दिया ।