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है कि जरदा छोड़ दूं पर हर बार असफल रहा हू । आज भी सोचा - जितनी तम्बाकू मेरे पास पड़ी है उसके अतिरिक्त फिर तम्बाकू नहीं खाऊगा । पर फिर मन में आया इस प्रकार त्याग नही हो सकेगा । इसी - लिए अब जबकि भावना में एक उत्कर्ष है, इसका त्याग कर दिया । सोचता हू भूतकाल में जिस प्रकार अनेक प्रत्याख्यानों को निभाता श्राया हूं तो इसे भी निभा लूंगा ।