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२१ मार्च को जसवतगढ स्टेशन होते हुए २२ मार्च को लाडनू पधारे । लाडनू आचार्यश्री की जन्मभूमि है । अतः यहां के लोगों को आचार्यश्री मे अपना अपनत्व अधिक दीख रहा था। पर आचार्यश्री "वसुधव कुटुम्बकम्" के सिद्धान्त को आगे रखकर चलते हैं अतः वह इस लघु दायरे मे कैसे बच सकते है ? फिर भी लोगों ने अत्यन्त उत्साह और उल्लास से आचार्यश्री का स्वागत किया ।