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घर है चाहे जब ये ना सकती है । मैने अनेक बार इनको निमत्रण भी दिया था पर इन्होने स्वीकार नही किया इसमें मेरा क्या दोष है।
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ननद ने कहा- मैं पहले एक बार वहा गई थी तो इन्होंने गेरा सम्मान नही किया तब मैं फिर से इनके घर जाने की इच्छा कैसे कर सकती
भाभी
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- वह बहुत पहले की बात है । मैं मानती हू वह मेरी गलती हुई थी। पर उसके बाद तो अनेक वार निमत्रण भेजा था । ये भी तो व्रती ह इन्हें भी तो अपने मन मे विगत की बातो का इस नहीं उतना चाहिए ।
प्राचार्यश्री ने कहा- तुम अगुव्रती हो यत तुम्हे छोटी-छोटी बातों को बाधकर नही रखना चाहिए ।
ननद - अगर ये मेरा सम्मान करेगी तो मुझे वहा जाने मे क्या कठिनाई है ? वह तो मेरे पूज्य पिताजी तथा भाईजी का ही तो घर है ।
झट से स्थिति में परिवर्तन हो गया और भाभी ने ननद के पंगे मे पडकर अतीत में हुए श्रमद् व्यवहार की क्षमा मागी । ननद ने भी बडे प्रेम से अपने श्रमद् व्यवहार की उनसे क्षमा मागी । कुछ लोग सोच सकते है कि व्रती भी कितनी छोटी-छोटी बातों में उल जाते हैं पर इसमे सोचने जैसी क्या बात है ? उलझता तो सारा जगत् ही है जो उलझ कर भी सुलभने वा प्रयत्न करते है क्या यह साधना के पथ पर आगे बढने का संकेत नही हे ?
आचार्यश्री ने अपने उपमहारात्मक प्रवचन में प्रव्रतियों को शिक्षा देते हुए कहा - व्रती का जीवन जनसाधारण के जीवन से कुछ ॐचा होना चाहिए। वे ही बाते जो दूसरे लोग करते हे प्रती भी करने