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बहुत सारे साधु-साध्वी यही से विहार करने वाले थे । अतः चैत्र कृष्णा प्रतिपदा के दिन श्रावश्यक उपकरण जैसे पूंजणी, रजोहरण, टोक्सी, स्याही आदि चीजें संघ भंडार से वितरित की जाने की थी । बहुत सारे साधु अपनी-अपनी आवश्यकता की चीजें लेने आए थे । एक साधु ने आचार्यश्री से रजोहरण मागा । आचार्यश्री ने पूछा- तुम्हारा पुराना रजोहरण कहा है? उन्होने अपनी काख से पुराना रजोहररंग निकाल कर दिखाया । प्राचार्यश्री ने उसे देखकर कहा -- यह तो अभी कई दिनो तक और चल सकता है । अत तुम व्यर्थ ही क्यों नया रजोहरण लेते हो ? हमे अपने प्रत्येक उपकरण का पूरा कस लेना चाहिए । फिर तो आचार्यश्री ने प्रत्येक नया रजोहरण लेने वाले साधु से उसका पुराना रजोहरण देखा । जिसका रजोहरण विल्कुल टूट गया उसे ही नया रजोहरण मिला। बाकी साधुग्रो को पुराने से ही काम चलाने का श्रादेश दिया ।
बीदासर मे शिक्षा का अपेक्षाकृत कम प्रवेश है । प्रत. लोग पुराने रहन-सहन को ही अधिक पसन्द करते हैं । फिर भी शासन के प्रति सबकी भा-नाए अत्यन्त नम्र हैं । इसीलिए श्राचार्यश्री ने इस स्थान को वदनाजी के स्थिरवास के लिए उपयुक्त समझा है ।
मुनिश्री छोगालालजी ने यहा जैनेतर जातियो के लोगो को सुलभ बोधि बनाने का अच्छा परिश्रम किया है ।
मेवाड से भी यहा अनेक भाई दर्शन करने आए थे ।
वीदासर से चाडवास गुलेरिया होते हुए १८ मार्च को प्राचार्य श्री सुजानगढ पधारे । सर्वप्रथम प्रोसवाल विद्यालय के नव-निर्मित भव्य भवन मे श्राचार्यश्री का स्वागत हुआ । दिन-भर विराजना भी वही हुआ । तदनन्तर १६ मार्च को हजारीमलजी रामपुरिया के कमरे मे विराजे ।