Book Title: Jan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Meghraj Sanchiyalal Nahta

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Page 164
________________ १२९ देने मे तुम्हारे क्या आपत्ति है । वह कहने लगी नहीं, मैंने कह दिया हमारे यहा कोई स्थान नहीं है। हम आश्चर्यान्वित रह गए। हमने फिर कहा--वहन । भले ही तुम हमे स्थान मत दो, पर ऐसा तो मत कहो तुम्हारे पास स्थान नहीं है । हमने दिन मे देखा था कि तुम्हारे घर पर एक अोरा (कमरा) खाली पडा है । कृपया हमे असत्य समझाने के लिए तो विवश मत करो। इतने मे गृहस्वामी भी जो अपना ऊट लेकर जगल गया हुआ था, आ गया। हमने उससे कहा-भैया ! तुम्ही ने तो हमे दिन में कहा था कि रात मे हम अपना स्थान प्रापको दे देंगे । अत उसी भावना से हम आ गए । अब तुम्हारी पत्नी कहती है-- हम तो स्थान नहीं देंगे। तुम हमे दिन मे मना कर देते तो हम अपना दूसरा स्थान खोज लेते। पर अव बतानो रात मे कहा जाए ? वह भी वेचारा निरुपाय था। कहने लगा-महाराज, मैं क्या करू? स्त्रिया नही मानती हैं तो मै आपको कैसे ठहरा सकता है ? निदान हमको वहा से हटना पडा। रास्ता गदा था सो तो था ही। पर यहा आज-कल अपने अपने घरो की सीमानो को काटो से आच्छादित किया जा रहा था अत सारे मार्ग मे यत्र-तत्र काटे बिछे थे इससे चलने में वडी कठिनाई हो रही थी। अधेरा भी बढने लगा था पर जाए भी तो कहा? आखिर दूसरे स्थान मे गए । वहा भी गृहपति ने स्थान देने से निषेध कर दिया । फिर तीसरे मकान मे गए । वहा एक परिचित व्यक्ति ने रात भर के लिए आश्रय दे दिया। हालाकि मकान साफ तो नही था। सर्दी से बचने के लिए भी काफी नहीं था। पर उसने आश्रय देने की जो अनुकम्पा की वह क्या कम थी हमे भी खुशी हुई कि चलो रात भर रहने के लिए मकान तो मिला। रात मे इन सब घटनामो को स्मरण कर इतने हसे कि पेट दुखने

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