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गुण-दोषो की आलोचना करते है। एक-एक शब्द की तह खोजते हैं। उच्चारण की स्पष्टता पर ध्यान देते हैं। भावों में संगति विठाते हैं। ध्वनि को सयमित करवाते है। इतना ही नही बल्कि भाषण देते समय खडे किस प्रकार रहना चाहिए यह भी बतलाते हैं । जो यहा से उत्तीर्ण हो जाता है वह सभवत फिर कही पराजित नही हो सकता। इसीलिए यह एक प्रकार से हमारा परीक्षा-पक्ष भी बन जाता है । भाषण मे सगीत को भी प्राचार्यश्री महत्वपूर्ण मानते है। अत यदा-कदा हमारी गायनपरीक्षा भी इसी मच पर से होती रहती है।