Book Title: Jan Jan ke Bich Acharya Shri Tulsi Part 02
Author(s): Hansraj Baccharaj Nahta
Publisher: Meghraj Sanchiyalal Nahta

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Page 177
________________ २८-२-६० पडिहारा से नौ मील चलकर करीब सवा नौ बजे हम लोग तालछापर स्टेशन पहुंचे । स्टेशन पर कोई बस्ती नहीं है । केवल एक धर्मशाला है। पर यह स्थान इतना बीच मे वसा हुआ है कि वह छापर, सुजानगढ, लाडनू, चाडवास तथा बीदासर आदि अनेक गावो के लोगो से खचाखच भर गई । पडिहारे के भी अनेक भाई-बहन ठेठ यहा तक पहुचाने के लिए आये थे। रास्ता प्राय सडक होकर ही चलता था। पर कुछ दूर तक रेलवे लाइन होकर ही चलना पड़ा था। उस पर ककर इतने थे कि पग-पग पर कष्टो का सामना करना पड रहा था। यद्यपि ककर तो सडक पर भी थे पर वे वालू से ढके हुए थे । अत चलते समय कोई कष्ट अनुभव नहीं हो रहा था। मन मे कल्पना आ रही थी कि जीवन में भी यदि कोई इस प्रकार ककर रोडो को ढकता रहे तो कितना अच्छा हो ? पर ऐसा सौभाग्य कितनो को मिला है ? जीवन से बाधाएं निरस्त ही हो जाए यह कभी सभव नहीं है। पर यदि कोई उनको ढकता भी रहे तो कम-से-कम गति में तो अवरोध नही पाये । हा, सभल कर चलना तो हर स्थिति मे अपेक्षित है। अत ढके हुए ककरो से भी सावधान होकर चलना आवश्यक है । उस स्थिति में जबकि पैरो मे लगी हो तव तो और भी सभल कर चलना पडता है । पर उस सौभागी से किसको ईर्ष्या नही होगी जिनकी बाधाओ को गुरुजन ढकते रहते हैं। मध्याह्न मे सुधरी निवासियो की ओर से श्री मोतीलालजी राका ने द्विशताब्दी समारोह का एक कार्यक्रम सुधरी मे आयोजित करने का

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