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कोई उनके निश्चय में परिवर्तन करना चाहे तो वह प्राय असफल ही होता है, किन्तु यह उनकी एक विशेषता है कि अपने निश्चय पर वे सबको सहमत करना चाहते है । यदि कोई सहमत नहीं होता है तो उसे वार-बार समझाने का प्रयत्न करते हैं । यहा तक कि साधारण व्यवहार की बातो मे भी वे साधु तथा श्रावको की सहमति को आगे लेकर चलते है । अनेक व्यक्तिगत प्रसगो पर कोई हठ करके बैठ जाता है तो वे सहसा उसे निराश करना भी नहीं चाहते । उनका यह मत्र है कि भरसक अपनी कठिनाइया दूसरो के सामने रख दी जाए पर यथासभव किसी प्रार्थी के मन को नही तोडा जाए । इसीलिए यद्यपि आज रात मे आचार्यश्री यहा नही ठहरना चाहते थे पर भक्तो की प्रार्थना के आगे उन्हे झुकना पड़ा, और रात यही विताने का निश्चय करना पड़ा।
आहारोपरान्त पजाब तेरापथी सभा के अध्यक्ष लाला शिवनारायण अग्रवाल ने अपने साथियो सहित पजाव मे अधिक से अधिक साधु-साध्वियो को भेजने का निवेदन किया। उनकी प्रार्थना थी कि कम से कम १६ सिंघाडे तो उधर भेजे ही जाने चाहिए। आचार्यश्री ने उनकी प्रार्थना सुनी और यथासभव उसे पूर्ण करने का आश्वासन भी दिया। इसी प्रसग को लेकर प्राचार्यश्री ने साधुओ से कहा___"हमारा सघ वर्तमान मे प्रगतिशील धर्म-सधो मे से एक है। आज ऐसे धर्म-सधो की आवश्यकता है जो रूढिवाद से परे शुद्ध अध्यात्म-भाव से जन-जन के आत्मधर्म का स्पर्श करें। हम इसी दृष्टिकोण को लेकर आगे बढना चाहते हैं और बढ रहे हैं। इसीका यह परिणाम है कि पजाद मे इन थोडे से वर्षों मे न केवल हमारा प्रवेश हुआ है अपितु कुछ-कुछ सफलता भी मिलने लगी है। साधुओ तुम लोग दृढता से आगे बढते जानो। मुझे अपने कार्य मे जरा भी साम्प्रदायिकता की गध नही आती । यदि साधु लोग वहा जमकर काम करें तो मुझे पजाब मे अनेक सभावनाएं