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बहन-यह तो मैं जानती ही हू । पर जब गुस्सा करना मुझे छोडना ही है तो आज ही क्यो न छोड दू।
आचार्यश्री--अगर गुस्सा आ जाए तो ?
बहन-आ जाए तो उस दिन नमक नही खाना । देखू वह कितने 'दिन आता है । आचार्यश्री ने उसे प्रतिज्ञा करवा दी और उसने कर ली। साधु-सगति का यही तो फल है । दूर-दूर से आने वाले दर्शनार्थी यदि इसी भावना से आए तो लाभ स्वय उनसे चिमट नही जाए ? पर केवल रूढि निभाना तो कोई विशेष महत्व नहीं रखता। दूर-दूर से आने वाले दर्शनार्थी शायद इस प्रसग को जरूर पढेगे । और ऐसी आशा करने का कोई कारण नही है कि वे इससे कुछ लाभ नहीं उठाएगे । ___ मध्यान्ह मे आचार्यश्री हनुमान वालिका विद्यालय" मे प्रवचन करने पधारे । सूरजमल नागरमल की ओर से विशाल रूप से चलने वाले जनहित के कार्यों में एक प्रवृत्ति यह भी चलाई जाती है । फार्म के वर्तमान अधिकारी श्री मोहनलालजी जालान, जो यहा कार्यवश आए थे, प्रवचन मे उपस्थित थे । उन्होने आचार्यश्री का स्वागत करते हुए कहा-आचार्यश्री देश की छोटी-छोटी और छोटे-छोटे लोगो तथा बच्चो की समस्याओ को उतना ही महत्व देते हैं, जितना बडी-चडी तथा बडे-बडे लोगो की समस्याओ को महत्व देते है । यह बडे ही हर्प का विषय है । हमारे इस छोटे से विद्या मदिर मे आकर उन्होने अपनी इस प्रवृत्ति का परिचय दिया है । इसका हम हृदय से स्वागत करते है।