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एक समय था जब मत्री मुनि आचार्यश्री के साथ रहते थे तब सरदारशहर से यहा तक आने मे तीन चार दिन लग जाते थे। पर अब मत्री मुनि तो रहे नही । दूसरे वृद्ध सत धीरे-धीरे आ रहे हैं । आचार्यश्री जब इतने तेज चलते है तो वे लोग उनका सहगामित्व कैसे निभा सकते है ? इतने मे ही वस नही हो गया है अभी तक शाम को साढ़े तीन मील फिर चलना है।
कुछ तो सरदारशहर से प्रस्थान करने मे विलम्ब हो गया था और कुछ विहार लम्बा था। अत यहा पहुचते-पहुचते काफी थकावट प्रा गई। सभी लोग तृष्णाकुल हो गए। यदि मनुष्य अकेला चले तो वह समय से चल सकता है और तेज भी चल सकता है। पर जो समाज को साथ लेकर चलता है उसे चलने मे भी विलम्ब हो जाता है और धीरेघोरे भी चलना पडता है। आचार्यश्री अपने साथ एक विशाल जनसमूह को लेकर चलते है । अतः उन्हे विदा देने मे ही बहुत समय लग गया। जव सरदारशहर से विहार किया था तो इतना जन-समूह साथ था कि रोके नहीं रुक मकता था । उन्हे विदा देने मे समय तो लगता ही। ___ आचार्यश्री स्वय खूब चलते है और दूसरो को भी खूब चलाते है । चलाते क्या है दूसरे स्वय उनके साथ हो जाते है । विवश होकर नही अपने आप । पुरुप ही नही स्त्रिया भी। युवक ही नही वृद्ध और वालक भी। आज भी साथ मे काफी स्त्रिया और बच्चे आए थे । कूदते फादते और हसते खेलते।
हर्प मे कोई तो रोटी खाकर पाए थे और कोई भूखे ही चल दिए । कुछ आगे चलने की नीयत से पाए थे और कुछ अपने साथियो को देखकर साथ हो गए । कुछ एक के माता-पितानो को सूचना ही नहीं मिली होगी । अत वे वेचारे चिंता करते होगे अपने बच्चो की । पर उनकी तो अपनी टोलिया चल रही थी।