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के कारण चीन भारत से रुष्ट हो गया है और अब वह अपने मधुर सम्बन्धो को कटुता की ओर ले जाना चाहता है, क्या यह सही है ?
प्रधानमत्री-हो सकता है एक कारण यह भी हो । पर मुख्य रूप से चीन की विस्तारवादी मनोवृत्ति ही हमारे सम्बन्धो को कटु बना रही है। हमने चीन को राष्ट्र संघ का सदस्य बनाने का सदा समर्थन किया है । उसकी दूसरी उचित प्रवृत्तियो का भी हम समर्थन करते है । पर अपने देश की भूमि पर उसका पैर किसी भी स्थिति मे नही जमने देंगे।
प्रोचार्यश्री-आपकी नीति सदा समझौते की नीति रही है। पर क्या सिद्धात की हत्या कर भी आप समझौते को अधिक महत्व देना चाहते हैं ?
प्रधानमत्री-नही । मैं चाहता हू जहा तक हो सके मनुष्य को समझौता करना चाहिए । पर ऐसा समझौता जो सिद्धान्त की ही हत्या कर डाले मुझे मान्य नहीं है । जहां तक दवाई से रोग मिट जाये तो प्रयत्न करना चाहिए । पर उससे अगर रोग के रुकने की सभावना नहीं हो तो फिर तो आपरेशन ही करवाना पडता है । इस प्रकार करीब २५ मिनट तक आचार्यश्री ने प्रधानमत्री से अनेक विषयो पर विचार-विमर्श किया। तत्पश्चात् पुन बिडला मन्दिर लौट आए। बीच मे आचार्यश्री भारत के यशस्वी कवि श्री हरिवंशराय बच्चन के निवास स्थान पर भी पधारे । श्री सुमित्रानन्दन पत भी उस समय वही उपस्थित थे। उनसे कुछ देर तक साहित्य विषयक अनेक प्रसगो पर बातचीत हुई। __उसी दिन मध्याह्न मे श्री जैनेन्द्रकुमार तथा अन्य नागरिको ने आचार्यश्री की राजस्थान यात्रा के लिए शुभकामनाए प्रगट की। तत्पश्चात् नागलोई की ओर विहार हो गया । इस प्रकार दिल्ली का यह चार दिनो का प्रवास अपने आप मे बहुत ही सफल रहा । यह अत्यन्त प्रसन्नता की बात है कि प्रणवत-आन्दोलन को जितना गावो का समर्थन मिल रहा है उतना ही शहरी लोग भी उसका समर्थन करते है।