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प्राचार्यश्री इस प्रकार २० मिनट तक सरपच से उलझे रहे। वारबार सरपच के हृदय मे मद्य-मुक्ति की हिलोरें उठती पर दूसरे ही क्षण इस महान् उत्तरदायित्व से वह काप जाता । एक प्रवुद्ध व्यक्तित्व उसके सामने खडा था। जो उसे बार-बार व्यसन-विरक्ति का सदेश दे रहा था। आखिर वह लुभावना व्यक्तित्व काम कर गया और बुराई पर भलाई की जीत हो गई। एक अव्यक्त विचार तरग उसके अन्तर को छू गई और सरपच ने हाथ जोडकर आजीवन शराब नहीं पीने की प्रतिज्ञा कर ली। उपस्थित जन समुदाय ने नौ वर्षों से चले आने वाले अपने सर्व प्रिय सरपच का न केवल तालियो की गडगडाहट से ही स्वागत किया अपितु एक के बाद एक इस प्रकार दसो व्यक्तियो ने खडे होकर उसका अनुगमन भी किया। एक साथ एक विचार क्रान्ति सब मे अभिव्याप्त हो गई। भले ही कुछ लोग साधुओ की साधना को निरर्थक समझते हो पर वे सत्य ही समझ रहे हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता।