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१४१ जीवन का अभिन्न सहचर है उन्मुक्त और अनिवार्य ।
सरपच-पर वे हमे किधर ले जाना चाहते है ? साम्यवाद की ओर या समाजवाद की ओर?
आचार्यश्री-मेरे अपने व्यक्तिगत विचार से मुझे ऐसा नहीं लगता कि वे हिंसा के समर्थक हो? वे अहिंसा और मैत्री के माध्यम से देश को समता की ओर ले जाना चाहते है । समता केवल साम्यवाद से ही आ सकती है ऐसा उनका विचार मुझे नहीं लगता।
सरपचक्या आपने चीन के विषय मे नेहरूजी से बातचीत की थी। आज चीन भारत की सीमा का अतिक्रमण कर रहा है यह क्या हमारी तिब्बत सम्बन्धी नीति का परिणाम नही है ?
आचार्यश्री हा बातचीत के प्रसग मे उन्होने मुझे कहा थासभव है हमारी तिब्वत नीति से चीन कुछ रुष्ट हो गया हो । पर इसका मूल कारण तो उसकी साम्राज्य-विस्तार की नीति ही है। वर्तमान घटनामो से उसकी विस्तार भावना को वेग मिल सकता है। पर हम उस
ओर से असावधान नहीं हैं। ___ आचार्यश्री ने उन्हे घोर तपस्वी मुनिश्री सुखलालजी के बारे मे बताया तो वे कहने लगे-हा, इस सम्बन्ध मे मुझे कुछ मालूम तो है। पर एक प्रश्न मेरे मन में बार-बार उठता रहता है। क्या आपके अनुशासित संघ मे भी इस प्रकार के अवैध अनशन हो सकते है ?
उनका ख्याल था कि मुनिश्री अपनी किसी माग को लेकर अनशन कर रहे हैं। पर आचार्यश्री ने उन्हें बताया कि यह कोई सत्याग्रह नहीं है अपितु आत्म-साधना की दृष्टि से वे ऐसा कर रहे है। हमारे और उनके पूज्य आचार्यश्री कालूगणि ने अपने जीवन मे साठ वसन्त देखे थे। जव वे स्वर्गगामी हुए तो उन्होंने भी सकल्प कर लिया था कि मुझे भी अपने गुरु से अधिक नहीं जीना है । इसीलिए उन्होने तपस्या