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१६-२-६०
सरदारशहर से थोडी थोडी देर मे सवाद आ रहे थे कि तपस्वीजी का जीवन - दीप व चुने ही वाला है । पर आचार्य श्री को विश्वास था कि उनके जाने से पहले तपस्वी चिर निद्रा मे नही सोएगे । इसीलिए भाज उदासर से विहार करते ही आचार्यश्री ने मित्र-परिषद् के स्वयसेवक से पूछा -- घडी मे कितने वजे हैं। उसने कहा --- सात बजकर इक्कीस मिनट हुए है।
आचार्यश्री --- तव तो हमारा काम भी इक्कीस ही होगा ।
पचास कदम आगे चले होगे कि सामने से एक साड दाईं ओर से आता हुआ मिला । आचार्यश्री ने कहा- जाते ही तपस्वी का काम सिद्ध हो जाएगा ऐसा लगता है ।
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आचार्यश्री फूलासर से कुछ ही आगे वढे थे कि भवरलालजी दूगड़ तथा सम्पतमलजी गधेया सामने से आते दिखाई दिये । उनके निकट आते ही आचार्यश्री ने पूछा- तपस्वी की क्या स्थिति है ? उन्होने निवेदन किया- उनकी स्थिति बडी नाजुक है । ग्रच्छा हो आप अभी सीधे सरदारशहर ही पधार जाए। सरदारशहर उदासर से पन्द्रह मील पडता था । रास्ता बिलकुल टीवो का था | बालू गर्म हो चुकी थी । इसीलिए श्राचार्यश्री कुछ देर बीच में ठहर कर मध्याह्न मे २ बजे वहा पहुचना चाहते थे । पर उनका यह सवाद सुन कर उन्हे वहुत जल्दी अपने निर्णय में परिवर्तन करना पडा । परिणामतः बीच मे केवल आधे घण्टे मे कुछ हल्का-सा नाश्ता कर आचार्यश्री तत्क्षण सरदारशहर की ओर चल पडे । साथ मे दो-चार साधु थे । बाकी साघु