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आचार्यश्री और साधु लोग पैदल चलते हैं इस विचार ने कुछ श्रावक लोगो को भी पैदल कर दिया । हासी के कुछ कार्यकर्ता इसीलिए मोटर होते हुए भी पैदल चलने लगे । पर गहरी वालू ने उन्हे अधिक दूर नही चलने दिया। थककर बैठ गए । मोटर की प्रतीक्षा करने लगे। मोटर
आई तो उसमे बैठकर आगे निकल गए । वीच मे आचार्यश्री मिले तो दर्शन किए। आचार्यश्री ने कहा-वस । वस मिल गई इसलिए पैर फूल गए। ___ कार्यकर्ता-नही हमारा वालू मे चलने का अभ्यास नहीं है । इसलिए थक गए, मोटर मे आ गए।
आचार्यश्री ने कहा- यही तो साधु जीवन और गृहस्थ जीवन मे अन्तर है । गृहस्थ यदि चाहे तो वाहन मे बैठ सकते है और चाहे तो पैदल चल सकते हैं । साधुप्रो के लिए तो एक ही विकल्प है। उन्हे तो हर हालत मे पैदल ही चलना पडता है।