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१४-२-६०
आचार्यश्री अपनी लम्बी पद-यात्रानो मे जहा सैकडो ग्रामो मे रुक-रुक कर नैतिकता की शख-ध्वनि सुनाते है वहा समयाभाव के कारण हजारो गावो मे रुक भी नहीं सकते । आज भी देवीपुरा गाव से गुजरते हुए प्राचार्यश्री को वहा के निवासियो ने घेर लिया। सभी ने विनियावनत होकर वन्दन किया और खडे हो गए । सरपच बच्छराज आगे आया और कहने लगा-क्या आज आप यहा नहीं रुक सकते ?
प्राचार्यश्री हमे अभी आगे जाना है । वहा का प्रोग्राम बन चुका है। सरपचक्या थोडी देर के लिए भी आप नहीं रुक सकते ?
मृदुता मनुष्य को विवश कर देती है। आचार्यश्री को भी पिघलना पड़ा और कुछ देर वहा उपदेश करना पड़ा। उपदेश के बाद सरपच पूछने लगा-क्या नेहरूजी नास्तिक है ? ____ आचार्यश्री-इससे पहले कि मैं आपके प्रश्न का उत्तर दू, आप ही मेरे कुछ प्रश्नो का उत्तर दे दीजिए । क्या नेहरूजी सत्य और अहिंसा मे विश्वास नहीं करते ? क्षमा और मैत्री क्या उन्हे अप्रिय है ? क्या वे जीवन के छोटे-से-छोटे व्यवहार से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र तक समता और शाति का समर्थन नहीं करते ?
सरपच-यह तो है, पर वे किसी धर्म विशेष-मदिर, मस्जिद, गिर्जा, गुरुद्वारा आदि के उपासक तो नही है ।
आचार्यश्री-धर्म, उपासना से अधिक आचरण का विषय है । वह किसी स्थान-विशेष, दिन-विशेप या चर्या-विशेष मे नही बधता । वह तो