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४-२-६०
आज का दिन वह स्मरणीय दिन था जिसकी हासी वाले लोग बहुत दिनो से प्रतीक्षा कर रहे थे । यद्यपि हासी का यह महोत्सव एक औपचारिक महोत्सव ही था । अन्य महोत्सवो की भाति इस अवसर पर न तो अधिक साधु-साध्विया ही एकत्र हो सके थे और न आचार्यश्री भी अधिक दिनो तक ठहरने वाले थे । पर फिर भी पजाब के लिए यह वरदान ही साबित हुआ। सहस्रो नर-नारियो ने आज प्राचार्य भिक्षु को अपनी श्रद्धाजलिया समर्पित की । जिनके मर्यादा दिवस के रूप में यह महोत्सव मनाया जाता है । आचार्यश्री ने महामहिम आचार्य भिक्षु का स्मरण करते हुए कहा- उन्होने हमे मर्यादा पर चलने का सकेत दिया। सचमुच मर्यादा रहित जीवन एक अभिशाप है । वह स्वय तो नष्ट होता ही है पर दूसरो को भी अपनी वाढ मे नष्ट कर देता है। मर्यादा-महोत्सव हमे उसी महापुरुष की शिक्षाओ की स्मृति कराता है। अत अपने जीवन को मर्यादित कर हम उस महापुरुष को अपनी श्रद्धाजलि समर्पित करते हैं।
अखिल भारतीय प्रणवत समिति के मत्री श्री जयचन्दलालजी दफ्तरी ने मर्यादा-महोत्सव जो कि तेरापथ का एक मुख्य पर्व है, पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा-आज समाज मे जो अनुशासनहीनता व्याप्त हो गई है हम सवका यह कर्तव्य है कि स्वय आत्मानुशासित होकर देश तथा समाज को नैतिक, सदाचारी तथा अनुशासित बनाने का प्रयत्न करें।